Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unke Das Dharma
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ 'उत्तम' विशेषण भी जुड़ा हुआ है, जो सम्बद्ध धर्मों की गहराई तक जाने का आह्वान करता है। इनकी संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है -- १. उत्तम क्षमा -- इसका विरोधी धर्म है क्रोध। व्यक्ति छोटी-छोटी-सी बातों पर क्रोध करता है और संघर्षों को आमन्त्रित करता है। यदि होश में क्रोध किया जाये तो क्रोध आयेगा ही नहीं। क्रोध हमेशा बेहोशी हालत में आता है। क्रोध के निमित्तों को दूर किया जाये और क्रोध करने वालों को और अपना बरा करने वालों को यदि क्षमा कर दिया जाये तो वातावरण स्वभावत: स्वस्थ बन जायेगा और आनन्द से भर जायेगा। २. उत्तम मार्दव -- मार्दव का अर्थ है - मृदुता, कोमलता। यह मान के अभाव में होती है। अहङ्कारी दूसरे का सम्मान न कर उसे अपमानित करता है। वह थोथा अहं शिर पर लेकर घूमता रहता है और व्यर्थ में बुराइयां मोल लेता रहता है। यह अभिमान कभी धन का, कभी रूप का, कभी ज्ञान का कभी बल का, कभी जाति का होता है। प्रतिक्रिया से मुक्त होना ही वास्तविक मार्दव है। । ३. उत्तम आर्जव -- मृदुता आने के बाद माया, छल, कपट, गायब हो जाता है। कपट वक्रता लिये रहता है। टेढ़ापन तो हमेशा खराब ही रहता है। सरलता और निर्मलता भीतरी जागरण से ही होता है। निरासक्ति और सन्तोष भी आर्जव का ही बाय-प्रोडक्ट है। ४. उत्तम शौच -- शौच का अर्थ है पवित्रता, जो लोभ के अभाव में उपजती है। कपट भाव के तिरोहुत होने के बाद मन में पवित्रता आती है। मुर्छा व परिग्रह शुचिता न आने देने में कारण होता है। अर्जन के साथ विसर्जन भी होना ही चाहिए। ५. उत्तम सत्य -- शौच आने के बाद साधक सत्य की साधना करता है। सत्य का तात्पर्य है दूसरों को सन्ताप पहुँचाने वाले वचनों को त्यागकर स्व-पर हितकारी वचन बोलना। अनेकान्तवाद स्याद्वाद, नय और निक्षेप जैसे सिद्धान्त इसी के अन्तर्गत आते हैं। यहां से स्वतन्त्रता का जागरण होता है और परतन्त्रता समाप्त होने लगती है। ६. उत्तम संयम -- सत्य की साधना होने के बाद संयम की साधना की जाती है। संयम का तात्पर्य है मन की चञ्चल गति को रोक लेना। संयम एक प्रकार से अनुशासन है जो इन्द्रियों और मन पर लगाम लगाता है, आदतों में परिवर्तन करता है, मन, वचन, काय को संयमित करता है, आहार, निद्रा आदि को काबू में रखता है और धर्म की चेतना को समझने का अवसर देता है। ७. उत्तम तप -- संयम की गहराई के साथ तप की ओर झुकाव अधिक होता Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 150