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तत्वापसूत्रे
चैतन्यरूपेण स्वाभाविकः परिणामः समान एव भवति । ज्ञानदर्शनयोर्जीवात्मनश्चैतन्यरूपेण स्वामाविकपरिणामानुविधायित्वात् , तत्र-साकारं ज्ञानं व्यपदिश्यते, निराकारं दर्शनमुच्यते । ___स च स्वाभाविकचैतन्यरूपपरिणतिमासादयन् ज्ञानदर्शतरूपोपयोगः परस्परप्रदेशानां प्रदेशबन्धत्वात् कर्मणा एकीभूतस्यात्मनो द्रव्यतत्व प्रतिपत्तिहेतुर्भवति ।
तत्र---प्रदेशस्तावद् अवयवः जीवावयवानां परस्परं संयोगः कदाचिद् दृष्टो भवति, कदाचिच्च-शिथिलो भवति ।
तत्र-फलप्रदानोन्मुखस्योदीर्णस्य कर्मणोऽवयवाः जीवात्मावयवसंयोगं राग-द्वेषादिना शिथिलीकृत्यान्तः प्रविशन्ति । जीवकर्मणो रवयवानां मिथो मिश्रणरूपप्रदेशबन्धेन जीवः कर्मणा सहकीभूतो भवति भेदेन ज्ञातुं न शक्यते । यथा -- दुग्धं पयोमिश्रितं सद् जलेन सहकीभूतं पार्थक्येन ज्ञातुं न पार्यते-तथाऽवसेयम् । सम्यगुपयोगेन पुनरयं जीवः स्वस्मिन् मिश्रितेभ्यः कर्मपरमाणुभ्यः सकाशात् पार्थक्येन ज्ञातुं शक्यते, तस्मिन् समये कर्मपुद्गलानां चैतन्यरूपेण परिणत्य भावात् इत्याशयः।
द्रव्यजीवस्तु–यदा यस्मिन् शरीर स्थितः आत्मा ज्ञानादिभिर्भावैर्वियुक्तो व्यपदिश्यते, लोके भाविराजत्वस्यापि राजपुत्रस्य सेवनं दृष्टम् । तस्मिन् समये तस्य केवलं द्रव्यत्वात् पृथिवी शिलारूप समान ही स्वाभाविक परिणमन होता है। क्योंकि ज्ञान और दर्शन जीव के, चैतन्य रूप में स्वाभाविक परिणाम हैं । इनमें से ज्ञान साकार अर्थात् विशेष धर्मो का ज्ञापक है और दर्शन निराकार अर्थात् सामान्य का ही बोधक होता है ।
___ स्वाभाविक चैतन्य रूप परिणति को प्राप्त होता हुआ ज्ञान-दर्शन रूप उपयोग कर्मों के साथ मिले हुए होने के कारण एकमेक होने पर भी आत्मा की भिन्नता का ज्ञान कराता है।
अभिप्राय यह है कि कर्म जब योग और कशाय के कारण आत्मप्रदेशों के साथ बद्ध होते हैं तो एकमेक हो जाते हैं बन्ध के कारण जीव अलग नहीं रहता - कर्म के साथ एक रूप हो जाता है-भिन्न मालूम नहीं पड़ता । जैसे पानी के साथ मिला दूध पानी के साथ एकमेक हो जाता, अलग नहीं मालूम होता, उसी प्रकार बन्ध होने पर जीव
और कर्म भी अलग-अलग मालम नहीं होते एकाकार हो जाते है । फिर भी उपयोग रूप लक्षण के कारण जीव की कर्मों से भिन्नता जानी जा सकती है जीव के साथ मिल जाने पर भी कर्मपुद्गलों की चैतन्यरूप परिणति नहीं होती वह तो जीव में ही हो सकती है।
जब शरीर में स्थित जीव ज्ञानादि भावों से रहित विवक्षित किया जाता है, तब वह द्रव्य जीव कहलाता है, लोक में देखा जाता है कि भविष्य में राजा होने वाला राजपुत्र भी राजा