Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Kailashchandra Shastri
Publisher: Prakashchandra evam Sulochana Jain USA
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तत्त्वार्थ सूत्र *************अध्याय -D
पांच अणुव्रत
सात शील सल्लेखना का वर्णन
154 सल्लेखना और आत्मवध में अन्तर सम्यग्दर्शन के अतिचार
155 अहिंसाणु व्रत के अतिचार सत्याणु व्रत के अतिचार अचौर्याणुव्रत के अतिचार
157 ब्रह्म चर्याणुव्रत के अतिचार
158 परिग्रह-परिमाणव्रत के अतिचार
158 दिग्विरति व्रत के अतिचार देश व्रत के अतिचार
159 अनर्थ दण्ड विरति के अतिचार सामायिक व्रत के अतिचार
160 प्रोषधोपवास व्रत के अतिचार
160 उपभोग परिभोग परिमाण व्रत के अतिचार अतिथि संविभाग व्रत के अतिचार सल्लेखना व्रत के अतिचार दान का लक्षण
162 दान के फल में विशेषता
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(तत्त्वार्थ सूत्र **** दर्शनावरण के भेद वेदनीय के भेद मोहनीय के भेद आयु कर्म के भेद नाम कर्म के भेद गोत्र कर्म के भेद अन्तराय कर्म के भेद कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति का वर्णन कर्मो की जघन्य स्थिति का वर्णन अनुभव बन्ध का वर्णन
अनुभव के दो प्रकार फल देने के बाद कर्म की निर्जरा
निर्जरा के दो प्रकार प्रदेश बन्ध का कथन कर्मो की पुण्य प्रकृतिया कर्मों की पाप प्रकृतियाँ
अध्याय -D
168 168 169 171 171 176 176 176 177 178
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180 181 181
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161
183 183 184 184
नवम अध्याय संवर का लक्षण संवर के कारण गुप्ति का लक्षण समिति के भेद
गुप्ति और समिति में अन्तर दस धर्म
सत्य धर्म और भाषा समितियों में अन्तर बारह अनुप्रेक्षाए परीषहों को सहने का उद्देश्य परीषहों का वर्णन गुणस्थानों में परीषहों का विभाग
अष्टम अध्याय बन्ध के कारणों का कथन
163 बन्ध का स्वरूप
164 बन्ध के भेद
165 प्रकृति बन्ध के आठ भेद
166 आठों कर्मों की उत्तर प्रकृतियों की संख्या
167 ज्ञानावरण के भेद
167 अभव्य जीव के दो ज्ञानावरणों की सत्ता को लेकर शंका-समाधान
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