Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Kailashchandra Shastri
Publisher: Prakashchandra evam Sulochana Jain USA

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Page 50
________________ DRIVIPULIBOO1.PM65 (50) (तत्त्वार्थ सूत्र ************** अध्याय - अर्थ - धातकी खण्ड द्वीप में भरत आदि क्षेत्र दो-दो हैं। विशेषार्थ- धातकी खण्ड की दक्षिण दिशा और उत्तर दिशा में दो इष्वाकार पर्वत हैं । वे दोनों पर्वत इषु यानी बाण की तरह सीधे और दक्षिण से उत्तर तक लम्बे हैं। उनकी लम्बाई द्वीप के बराबर यानी चार लाख योजन है। इसीसे वे एक ओर लवण समुद्र को छूते हैं तो दूसरी ओर कालोदधि समुद्र को छूते हैं। उनके कारण धातकी खण्ड के दो भाग हो गये हैं- एक पूर्व भाग, दूसरा पश्चिम भाग । दोनों भागों के बीच में एकएक मेरूपर्वत है। और उनके दोनों ओर भरत आदि क्षेत्र तथा हिमवान आदि पर्वत हैं । इस तरह वहाँ दो भरत, दो हिमवान आदि हैं । उनकी रचना गाड़ी के पहिये की तरह है। जैस गाड़ी के पहिये में जो डंडे लगे रहते है जिन्हें अर कहते हैं, उनके समान तो हिमवान आदि पर्वत हैं। वे पर्वत सर्वत्र समान विस्तार वाले हैं । और अरों के बीच में जो खाली स्थान होता है उसके समान भरत आदि क्षेत्र हैं। क्षेत्र कालोदधि के पास में अधिक चौड़े हैं और लवण समुद्र के पास में कम चौड़े हैं । जम्बूद्वीप में जिस स्थानपर जामुन का पार्थिव वृक्ष है धातकी खण्ड में उसी स्थान पर धातकी (धतूरा) का एक विशाल पार्थिव वृक्ष है। उसके कारण द्वीपका नाम धातकी खण्ड पड़ा है। धातकी खण्ड को घेरे हुए कालोदधि समुद्र है। उसका विस्तार आठ लाख योजन है । और कालोदधि को घेरे हुए पुष्करवर द्वीप है। उसका विस्तार सोलह लाख योजन है ॥ ३३ ॥ आगे पुष्करवर द्वीप का वर्णन करते हैं पुष्कराधे च ||३४|| अर्थ- आधे पुष्करवर द्वीप में भी भरत आदि क्षेत्र तथा हिमवान आदि पर्वत दो-दो हैं। विशेषार्थ - पुष्करवर द्वीप के बीच में चूड़ी के आकार का एक मानुषोत्तर पर्वत पड़ा हुआ है, उसके कारण द्वीप के दो भाग हो गये हैं। तत्त्वार्थ सूत्र ***************अध्याय - इसीसे आधे पुष्करवर द्वीप में ही भरत आदि की रचना बतलायी है। पुष्करार्ध में भी दक्षिण और उत्तर दिशा में दो इष्वाकार पर्वत हैं, जो एक ओर कालोदधि को छूते हैं तो दूसरी ओर मानुषोत्तर पर्वत को छूते हैं। इससे द्वीप के दो भाग हो गये हैं- एक पूर्व पुष्करार्ध और दूसरा पश्चिम पुष्करार्ध । दोनों भागों के बीच में एक-एक मेरु पर्वत है। और उनके दोनों और भरत आदि क्षेत्र व पर्वत हैं। जहाँ जम्बूद्वीप में जम्बूवृक्ष है, वहीं पुष्करार्ध में परिवार सहित पुष्कर वृक्ष है। उसी से द्वीप का नाम पुष्कर द्वीप पड़ा है ॥३४ ॥ अब बतलाते हैं कि भरत आदि क्षेत्रों की रचना आधे ही पुष्कर द्वीप में क्यों हैं? समस्त पुष्कर द्वीप में क्यों नहीं है? प्राङ् मानुषोत्तरान्मनुष्यां ||३७।। अर्थ- मानुषोत्तर पर्वत से पहले ही मनुष्य पाये जाते हैं । अर्थात् जम्बूद्वीप, धातकी खण्ड और आधे पुष्कर द्वीप पर्यन्त ही मनुष्यों का आवास है । इन अढ़ाई द्वीपों से बाहर कोई भी ऋद्धिधारी या विद्याधर मनुष्य तक नहीं जा सकता । इसीसे मानुषोत्तर पर्वत के बाहर के द्वीपों में क्षेत्र वगैरह की रचना भी नहीं पायी जाती है ॥ ३५ ॥ आगे मनुष्यों के दो भेद बतलाते हैं आर्या म्लेच्छाश्च ||३६|| अर्थ- मनुष्य दो प्रकार के हैं- आर्य और म्लेच्छ । विशेषार्थ- आर्य मनुष्य भी दो प्रकार के हैं- एक ऋद्धिधारी और दूसरे बिना ऋद्धिवाले । जो आठ प्रकार की ऋद्धियों में से किसी एक ऋद्धि के धारी होते हैं उन्हें ऋद्धि प्राप्त आर्य कहते हैं। जिनको कोई ऋद्धि प्राप्त नहीं है वे बिना ऋद्धिवाले आर्य कहलाते हैं। बिना ऋद्धिवाले आर्य पाँच प्रकार के होते हैं- क्षेत्रआर्य, जाति आर्य, कर्म आर्य, चारित्र * *** *** *** # 76 *** ***** *

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