Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Kailashchandra Shastri
Publisher: Prakashchandra evam Sulochana Jain USA

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Page 70
________________ D:IVIPULIBOO1.PM65 (70) तत्त्वार्थ सूत्र * *** ******###अध्याय .) परमाणु कहते हैं । और जो स्थूल हो, जिसे उठा सकें, रख सकें, वह स्कन्ध हैं । यद्यपि ऐसे भी स्कन्ध हैं जो दिखायी नहीं देते । फिर भी वे स्कन्ध ही कहलाते हैं क्योंकि दो या दो से अधिक परमाणओं के मेल से जो पुद्गल बनता है वह स्कन्ध कहा जाता है। विशेषार्थ- पुद्गल बहुत तरह के होते हैं किन्तु वे सब दो जाति के होते हैं । अतः अणु और स्कन्ध में उन सभी का अन्तर्भाव हो जाता है। ऊपर कहे हुए बीस गुणों में से एक परमाणुओं में कोई एक रस, एक गन्ध, एक वर्ण और शीत-उष्णमें से एक तथा स्निग्ध रूक्ष में से एक इस तरह दो स्पर्श रहते हैं । ऊपर जो शब्दादि गिनाये हैं वे सब स्कन्ध हैं। स्कन्धों में अनेक रस, अनेक रूप वगैरह पाये जाते हैं ॥२५॥ अब स्कन्धों की उत्पत्ति कैसे होती है यह बतलाते हैं भेद-संघातेभ्य: उत्पद्यन्ते ।।१६।। अर्थ- भेद, संघात और भेद संघात से स्कन्धों की उत्पत्ति होती है। स्कन्धों के टूटने को भेद कहते हैं । भिन्न भिन्न परमाणुओं या स्कन्धों के मिलकर एक हो जाने की संघात कहते हैं। जैसे दो परमाणुओं के मिलने से द्विप्रदेशी स्कन्ध बनता है। इसी तरह तीन, चार, संख्यात, असंख्यात और अनन्त परमाणुओं के मेल से उतना ही प्रदेशी स्कन्ध बनता है। तथा एक स्कन्ध में दूसरे स्कन्ध के मिलने से या अन्य परमाणुओं के मिलने से भी स्कन्ध बनता है। इन्हीं स्कन्धों के टूटने से भी दो प्रदेशी स्कन्ध तक स्कन्धों की उत्पत्ति होती है। इसी तरह एक स्कन्ध के टूट कर दूसरे स्कन्ध में मिल जाने से भी स्कन्ध की उत्पत्ति होती है ॥२६॥ अब अणु की उत्पत्ति बतलाते हैं भेदादणुः ॥२७॥ अर्थ - अणु की उत्पति स्कन्धों के टूटने से होती है संघात से नहीं होती ॥२७॥ *** 41150 तत्त्वार्थ सूत्र ** *********अध्याय :D शंका - जब संघात से ही स्कन्धों की उत्पति होती है तो भेद संघात से स्कन्धो की उत्पति क्यों बतलाई? इस शंका के समाधान के लिये आगे का सूत्र कहते हैं भेद-संघाताभ्यां चाक्षुषः ||२८|| अर्थ- भेद और संधात दोनों से स्कन्ध चक्षु इन्द्रिय का विषय होता है। विशेषार्थ-आशय यह है कि अनन्त परमाणुओं का स्कन्ध होने से ही कोई स्कन्ध चक्षु इन्द्रिय के द्वारा देखने योग्य नहीं हो जाता । किन्तु उनमें भी कोई दिखाई देने योग्य होता है और कोई दिखाई देने योग्य नहीं होता । ऐसी स्थिति में यह प्रश्न पैदा होता है कि जो स्कन्ध अदृश्य है वह दृश्य कैसे हो सकता है। तो उसके समाधान के लिये यह सूत्र कहा गया है, जो बतलाया है कि केवल भेद से ही कोई स्कन्ध चक्षु इन्द्रिय से देखने योग्य नहीं हो जाता किन्तु भेद और संधात दोनों से ही होता है। जैसे, एक सूक्ष्म स्कन्ध है । वह टूट जाता है। टूटने से उसके दो टुकड़े हो जाने पर भी वह सूक्ष्म ही बना रहता है और इस तरह वह चक्षु इन्द्रिय के द्वारा नहीं देखा जा सकता। किन्तु जब वह सूक्ष्म स्कन्ध दूसरे स्कन्ध मे मिलकर अपने सूक्ष्मपने को छोड़ देता है और स्थूल रुप को धारण कर लेता है तो चक्षु इन्द्रिय का विषय होने लगता है-उसे आँख से देखा जा सकता है ॥२८॥ अब द्रव्य का लक्षण कहते हैं सद् द्रव्यलक्षणम् ||१९|| अर्थ- द्रव्य का लक्षण सत् है। अर्थात् जो सत् है वही द्रव्य है ॥२९॥ अब सत् का लक्षण कहते है उत्पाद-व्यय-धौव्ययुक्तं सत् ||३०|| अर्थ- जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त है, वही सत् है।

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