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चतुर्थस्तम्भः।
१२७ सर्व आगमसें अर्थात् आगम-वेदस्मृतिपुराणादि जैसा तिनका जीवनचरित्र प्रतिपादन करते हैं, तिनकों सुणके वा वांचके पूर्वोक्त देवोंके चारित्रकों जाणकर तिन देवोंके स्वरूपगुणका निर्णय करिए तो, इसमें विचार करो कि, क्या किसी देवकी निंदा है ? ॥ २२॥ अब पूर्वोक्त देवोंका किंचित् स्वरूप ग्रंथकार दिखाते हैं.
विष्णुः समुद्धतगदायुधरौद्रपाणिः
शंभुर्ललन्नरशिरोस्थिकपालपाली॥ अत्यन्तशान्तचरितातिशयस्तु वीरः
कम्पूजयामउपशान्तमशान्तरूपम् ॥ २३॥ व्याख्या-उगरी हुइ गदारूप करके रौद्रपाणी, अर्थात् भयानक जिसका हाथ है, ऐसे स्वरूपवाला तो विष्णु है; और गलेमें मनुष्यके कपालोंकी मालावाला स्वरूप, महादेवका अर्थात् ऐसे स्वरूपवाला महादेव है; और अत्यंत शांतरूप चरितातिशयवाला वीर महावीर अर्हन् है, यह स्वरूप पुराणादि शास्त्रोंमें और जैनमतके शास्त्रोंमें कथन करा है, तथा प्रत्यक्षमेंभी पूर्वोक्त देवोंद वरूप, तिनकी मूर्तियांद्वारा सिद्ध होता है. अब हम वाचकवर्गकों पूछते कि, तुम कहो, अब हम किसकों पूजें? शांतरूपवालेकों कि अशांतर गलेकों? ॥२३॥ अब ग्रंथकार पूर्वोक्तदेवोंके कृत्योंका किंचित् स्वरूप दिखाते हैं. दुर्योधनादिकुलनाशकरो बभूव विष्णुर्हरस्त्रिपुरनाशकरः किलासीत्॥ क्रौञ्च गुहोपि दृढशक्तिहरं चकार वीरस्तु केवल जगद्वितसर्वकारी२४
व्याख्या--दुर्योधनादि अनेक राजायोंके कुलोंका नाश करनेवाला विष्णु, कृष्ण होता भया, यह कथन महाभारतादि ग्रंथों में प्रसिद्ध है; और हर महादेव, त्रिपुरनामक दैत्यका नाश करनेवाला निश्चयकरके होताभया, और कार्तिकेयभी, क्रौंचनामक राजाकी दृढशक्तिका हरन-नाश करने अर्थात् क्रौंचराजाकी दृढशक्तिका नाश करनेवाला हुआ है, परंतु श्रीमवीर तो, केवल सर्वजगत्के हितके करनेवाले हुए हैं. अब कहो! किसकी हम पूजा करीए? ॥२४॥
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