Book Title: Tattvanirnaya Prasada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Amarchand P Parmar

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Page 862
________________ रावसाहेब शेठ वसनजी त्रीकमजी मूलजी, जे. पी. मुंबई. अगले पृष्ठके उपर सुंदर चित्र उन महाशयका है कि जिन्होंने बहुत छोटी उहरसेंही ज्ञानवृद्धि और परोपकार वृत्तीमें अपना दिल लगाना आरंभ किया है. शेठ वसनजी कच्छके दशा ओसवाल ज्ञातिके जैन गृहस्थ हैं. कच्छमें सूथरी ग्राम इनकी जन्मभूमि है; परंतु बहुत कालसें ये मुंबईके रहनेवाले हो गये हैं.. इनका जन्म विक्रम संवत १९२२ के द्वीतीय ज्येष्ट वदि ११ के दिन हुवाथा. भाग्यवान पुत्रके उत्पन्न होनेसें पिताका व्यापार बहुत बढ़ गया. अंतराय कर्मके उदयसें माता इनको चार दिनका छोडके कालका ग्रास बन गई. इनके पिता और पितामह (दादा) शेठ मूलजी देवजीने बडी होशिआरीके साथ इनका पालन किया. जन्मसेंही पिताके प्रेममें पूर्ण रीतिसें रहनेसें माताका वियोग मालूम न हुआ. दुर्भाग्यसे ८ वर्षकी उमरमें इनके पिता भी स्वर्गवासी हो गये. वृद्ध पितामहके ऊपर पौत्रकी लालन पालनकी चिंता आपडी. पितामहका इनपर प्यार षढत गया. अभाग्यवश पितामह भी संवत १९३२ में इनको १० वर्षका छोडके देवलोकको प्राप्त हो गये, परंतु जन्मसेंही इष्ट वियोगका दुःख सहन करनेका अभ्यास होनेसें दुःखको इन्होंने वश कर लिया. इनका धंधा सत्यवादी, निमकहलाल, और अनुभवी मुनीम शा. लखमसी गोविंदजीके हाथमें होनेसें बहुत अच्छी तरह चलता रहा. शेठ वसनजीने जैनशालामें गुजराती भाषाका और कुछ अंग्रेजीका भी अभ्यास कर लिया. कई श्रीमंतके लडके लाडसें और मातापिताके अभावसे अभिमानी, स्वेच्छाचारी, उद्धत और दुर्व्यसनी बन जाते हैं, वैसा हाल इनके मुनीमके पूर्ण अंकुशसें और निजकी बुद्धिसें न होने पाया, बरन बालक सोदागर बने रहें. संवत १९३४ की सालमें ज्ञातिनायक शेठ नरसी नाथाके कुलकी कन्या खेतबाईसें इनका लग्न हुवा, और प्रेमावाई और लीलबाई दो पुत्री उत्पन्न हुई. इनकी प्रथम स्त्रीके कालवश होनेसें उक्त नरसी शेठकी पौत्री रतनबाईसें संवत १९४६ में इनका दूसरा विवाह हुवा. और संवत १९५१ में मेघजी उपनाम काकुभाई नामक पुत्र उत्पन्न हुवा. शेठ वसनजी अपने रोजगारमें पूरी उन्नति करते हैं. इनके चेहरे और वर्तावसें नम्रता, सादापन, विनय, गुण, शांति, धर्मप्रेम, निराभिमान, सत्यता, शुद्धांतःकरण और नीति स्पष्ट प्रकट होती है. इन गुणोंसें अलंकृत होकर इन्होंने अपनी प्रतिष्ठा अपनी ज्ञातिमेंही नहीं बरन मुंबईके नामी सोदागरों में बहुत बढा ली है. हुबली, पारसी, अहमदनगर, खंडवा, धुलीया, आकोला, खानगाम, आकोट, वढवाण आदि नगरों में इनकी दुकाने हैं; और सेंकडों मनुष्य इनकी बदौलत उदरपोषण कर रहे हैं. इनके मुनीम गोविंदजी शामजीकी नेकी प्रसंशनीय होनेसें भी शेठ वसनजीको बडा सुबिधा रहा. वह मुनीम अब कालवश हो गये. . यह महाशय बडे उदार हैं, और इस छोटी उमरमें भी आजपर्यंत अनुमान रु. चार लाख सुकृत और धर्मकार्यमें लगा चुके हैं, और आगेके लिये भी धर्मकार्यमें कटिबद्ध हैं. धर्ममें ऐसे दृढ हैं कि, हुबलीके जैन मंदिरका प्रबंध स्वयं करते हैं, और इनके सुप्रबंधसें बहुत रुपैया भंडारमें जमा होगया है. संवत १९३४ में इनके पिताने सायेरा-कच्छमें जो जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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