Book Title: Tattvanirnaya Prasada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Amarchand P Parmar

View full book text
Previous | Next

Page 860
________________ रा.ब.शेठ माणेकचंद कपूरचंद और स्व.शेठ मगनभाई कपूरचंद. ये दोनों भाई जिनका गंभीर, संयुक्त फोटो सामने दृष्टिगोचर हो रहा है, बीसा ओसवाल जैन ज्ञातिके हैं, और पूना तथा मुंबई में निवास करते हैं. असलमें ये अहमदाबादके हैं, और इनके पूर्वजोंमेंसें शेठ दीपचंदके पुत्र, शेठ कीकाचंदको लालभाई और वजेचंद दो पुत्र थे. लालभाईका वंश अहमदाबादमें है, और लगभग सो वर्ष पहिले शेठ वजेचंद पूनामें जाकर आबाद हुवे. जवाहरातके धंधे में अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त करके ये पेश्वा सरकारके जवहरी नियत किये गये; और उन्हींकी सहायतासें एक बड़ा मकान शनिवार पेठमें बनवाया. पूनामें सवाई माधवराव पेश्वाके समयमें जब किलेका काम आरंभ हुवा, तब नाना फडनवीसकी इच्छानुसार इन्होंने किलेके बाहर जवहरीवाडा बसाकर व्यापारकी बडी उमति की. ये प्रत्येक जैनकार्यमें अग्रणी बनते थे, और बहुतसें जैन मंदिर बनवाने में इन्होंने सहाय दीथी. संवत १९०१ में ८८ वर्षकी वयमें इन्होंने स्वर्गवास किया. इसी समयसें यह दूकान शा. वजेचंद कीकाचंदके नामसे आजपर्यंत चल रही है. वह दूकान कई बार मरहठाओंसें लूटी गई थी. . उक्त शेठ वजेचंदको कपूरचंद, वमलचंद उपनाम वापूभाई और उत्तमभाई तीन पुत्र थे. शेठ कपूरचंद बहुतही शांत प्रकृतिके महाशय थे. वे सांसारिक कार्यसें बहुधा विरक्त रहते थे; उनको एकांतवास बहुत पसंद था और वे धर्ममें दृढ श्रद्धावान थे. शेठ बापुभाईने व्यापारादि भली प्रकार चलाकर अच्छा धन और प्रतिष्ठा प्राप्त किया. पूनाकी पींजरापोल पहलेही बनाने में और उसके निर्वाहके लिये अच्छा प्रबंध करानेमें इन्होंने बहुतही परिश्रम उठाया था, और अंत समयतक उसके ट्रस्टी थे. उक्त शेठ कपूरचंदके बडे पुत्र शेठ मगनभाईका जन्म संवत १८९३ में हुवाथा. वह पूनाहीमें रहकर सराफी और जवहरातका काम करते थे. मंदिरोंका कारवार जो पहलेसें इनके घरानेमें है, वह अच्छी तरह चल रहा है, और वह पींजरापोलके ट्रस्टी थे. इनके छोटे भाई शेठ माणेकचंदका जन्म संवत १८९८ में हुआ था. संवत १९१६ में इनकी दूकान बंबईमें भी स्थापित हुई और दूसरेही वर्ष शेठ माणेकचंद अपनी दूकानपर किल्लीदारीका काम करने लगे. शेठ बापुभाईकी शिक्षासें इस छोटीही अवस्थासें इन्होंने बडे होसलेके साथ धन और मान प्राप्त करना प्रारंभ किया. - सन १८७६ में सोलापुरके दुष्कालके समयमें हजारों जानवरोंकी प्राण-रक्षा करनेमें इन्होंने बहुत परिश्रम कर सब कार्यका भार अपने हाथमें लेकर बहुतही अच्छा प्रबंध किया. वणिकबुद्धि, कार्यकुशलता और दीर्घदृष्टीसें जो काम ये हाथमें लेते हैं, उसे आप अच्छी तरह पूरा करने में कभी कमी नहीं रखते हैं. ये दावुद सासून मिल और पायोनीयर मिलकी एजंसी, आढत, जवाहरात, सराफी, इस्टेट, रुई आदिका धंधा सफलतासें करते आये हैं. अपनी मीठी जबान, उद्योग और बुद्धिबलसें इन्होंने अनेक मित्र करलिये किसीके बीचमें टंटाबखेडा पडता है तो ये मिटा देते हैं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878