Book Title: Tattvanirnaya Prasada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Amarchand P Parmar

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Page 861
________________ संवत १९४८ में बंबईके श्री गोडीजी पार्श्वनाथजीके जैनमंदिरमें ये मैनेजींग दृस्टी हुवे. ये मंदिर अव्वल गिना जाता है और वह देवसूर-तप गच्छकी मालकीका है. यहर्सि बाहरगांवके बहुत से मंदिरोंको सहायता पहुंचती रहती है. आप वहांका कार्य बहुत भली प्रकार चला रहे हैं और जातिश्रम करके मंदिरका देवद्रष्य और इस्टेटकी अच्छी उन्नति करते हैं. इन्हींके समयमें भगवान के मुकुट आदि आभूषण सुंदर बनवाये गये; मंदिरका हिसाब छपाकर प्रसिद्ध करनेका सुधारा अवश्य ये शेठ अंगीकार करेंगे ऐसी आशा है. ____ सं० १९५२ में जब मुंबई में प्लेगकी बीमारी हुई तब अगुआ होकर इन्होंने एक चंदा करके पहलेही पहले जैन हॉस्पीटल स्थापन किया और सेक्रेटरी मी० अमरचंद पी० परमारकी स्तुतिपात्र सहायतासे सेग्रेगेशन, हास्पीटल आदिका अच्छा प्रबंध प्लेग कमीटीको भी जोर शोर दे कराकर लोकोंकी नासभाग, छिपछिपी, धर्मभृष्ट होने आदिकी आपत्ति दूर करा दिया. इनको इस सेवाके उपलक्षमें ता. २१ जुलाई सन १८९७ को जैनबंधु और कपोलकोमकी ओरसें प्लेगकमीटीके चेअरमेन जनरल डबल्यु गेटेकरके हाथसें माधवबागमें एक महती सभामें मानपत्र दिया गया. मान्यवर गवर्नमेन्टने भी आपको दिसंबर स ।१८९८ में रावबहादूरकी उपाधि प्रदान की. सं. १९५६ के भीषण दुकालमें जब प्रतिष्ठावाले घरानेके जैन लोग भी अन्नको तरसते थे तो आपने उनकी सहायता अमेरिकन कौंसल मि. विलियम टी. फीके उद्योगसे प्राप्त तथा यहांपर फंडद्वारा तथा निजके धनसें बहुत अच्छी तरह की थी. शेठ बापुभाईका स्वर्गवास संवत १९३६ में हुवा. उनको एक पुत्र और एक पुत्री है पुत्र मी. अंबालालका जन्म सं. १९३३ में, शेठ माणेकचंदके पुत्र मी० नेमकचंदका सं० १९३२ में, और शेठ मगनभाईके पुत्र बाबुभाईका सं० १९५६ में हुवा. शेठमगनभाईको दो पुत्री भी हैं. शेठ मगनभाईका स्वर्गवास पूनामें सं. १९५९ के श्रावण मुदि१४ को हुवा.. __ आशा की जाती है कि भविष्यत्में मी० अंबालाल एक अच्छे अर्थशास्त्री और मी० नेमचंद एक नामी जवहरी होंगे. मी. अंबालाल जैन कॉन्फरन्सकी इंटेलीजंस, हेल्थ और वॉलंटीयर कमिटीके अध्यक्ष नियत किये गये थे जो कार्य उन्होंने कुशलतासे किया. यद्यपि ये पूनानिवासी हो गये हैं, तो भी राह रसम अहमदाबादकी रखकर अपनी पुत्रियोंका विवाह वहांही करते हैं. सात पीढीतक इनकी प्रतिष्ठा एक समान चली आई है. जैनोंके मुकद्दमें आदि धर्मकार्यमें ये अच्छा लक्ष देते हैं. गुप्त द्रव्यद्वारा गरीब जैन कुटुंबोंको और पुस्तकद्वारा मुनिराज और विद्यालयोंको सदा सहायता करते रहते हैं. अहमदाबादमें इनके पूर्वजोंका बनाया हुआ जैनमंदिर है. उसके जीर्णोद्धारके लिये आप तयारी कर रहे हैं; और इनके पूना तथा बंबईके दोनों निवासस्थानमें शोभनीय घर देरासर हैं. दूसरी जैन (स्वेतांबर ) कॉन्फरन्सकी “मंडप कमिटी" के आप अध्यक्ष नियत किये गये थे. और मंडपके और स्थायी फंडके कार्यमें इन्होंने स्तुतिपात्र मदद दी थी. शेठ माणेकचंद स्वभावके बडे नम्र, विचारशील, निराभिमानी, कुटुंबप्रेमी, श्रद्धाल, बचनके पूरे, विनयी और शीलवान हैं, और मित्रों को सहायता करने, दीनोंकी रक्षा तथा परोपकारमें सदा तत्पर रहते हैं. हुम इस कुंटुंबकी सदा वृद्धि और दीर्घायु चाहते हैं !! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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