Book Title: Tattvanirnaya Prasada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Amarchand P Parmar

View full book text
Previous | Next

Page 868
________________ १७ स्वर्गवासी शेठ तलकचंद माणेकचंद, जे. पी. शेठ तलकचंद जिनकी सुंदर तस्वीर अगले पृष्टपुर है, असल में सूरत के रहनेवाले थ. डच, फ्रेंच, फिरंगी, इंग्रेज आदिने प्रथम सूरत बंदरमेंही आकर अपनी कोठीएं की थी. इनके पूर्वज शेठ नानाभाई गलालचंद डचोंके सराफ थे. उक्त नानाभाईके पौत्र शेठ माणेकचंद के ये पुत्र थे. इनकी माता बाई विजयकुंवर वडीही धर्मात्मा थी. इनका जन्म सं १८९९ के वैशाख सुदि १३ को हुवा था. उनके चार भाई और तीन बहनो में से दो भाई और दो बहन विद्यमान है, सो भी अच्छे सुखी हैं. मुंबई. छोटी उमरसेंही इनको विद्यापर भारी प्रिति थी, और उस समय में भी इंग्रेजी आपने पढ़ लिया था. इनका प्रथम विवाह सं० १९१५ में बाई जीवकोर के साथ हुवा था. बारह वर्ष पीछे वह कालको प्राप्त हो गई, उनसें एक पुत्र मि० सोभागचंद और एक पुत्री हुई. इनका दूसरा विवाह सं. १९२८ में चंदनबाईके साथ हुवा था. शेठ तलकचंद मुंबई में आतेही कई, जवाहरात, शेर और बैंककी हुँडीकी दलाली आदिमें अच्छा धन और मान, प्रतिष्ठा प्राप्त करने लगे. मेसर्स तलकचंद शापुरजीके नामसें tarah इन्होंने लाखों रुपये पैदा किया. मि० शापुरजी एक लायक पारसी महाशय हैं. पालीताणा के जुलम केसमें, मक्षीजी आदि केसों में इन्होंने अपने समय और धनका भोग देके जैन धर्मकी अच्छी सेवा की थी. aashit " धी जैन एसोसिएशन आफ इंडिया " के ये सेक्रेटरी, वाइस प्रेसिडेंट और अध्यक्ष भी थे. महुवा रीलीफ फंड, गुजरात फीवर रिलीफ फंड आदि भी ये अध्यक्ष थे, और की प्रत्येक कमेटीमें ये मेम्बर नियत किये जाते थे. जैन पंचायत फंडका बीज भी इनहीके उद्योग रुपाथा; और कई जैन मंदिरके ये ट्रस्टी भी थे. Jain Education International शेठ तलकचंदने बडी वीरतासें Society for the Prevention of Cruelty towards Animals (प्राणि रक्षक मंडली ) की स्थापना करवाके उसके खरचेके लिये लागे लगाकर अच्छा प्रबंध करवाया. "लेडी साकरबाई दीनशा पीटीट हॉस्पिटल " के यह ट्रस्टी थे. बहुतसी कंपनीओके ये डीरेक्टर थे और मरकंटाईल प्रेस, कुकावाव प्रेस आदिके एजंट थे. बैंक संबंधी कार्यमें इनका अनुभव बहुत ठीक था और अच्छे मनुष्य इनकी सलाह से चलते थे. इन्होंने लगभग एक लाख रुपैया धर्मकार्य में व्यय किया होगा. जैन निराश्रित फंडमें रु. पांच हजार दिए थे और सुरतमें अपनी वाडी में एक जैन मंदिर बनवाया. श्री पालीताणा में एक जैन लायब्रेरी और मुंबई में अपनी धर्मपत्नी के नाम से " चंदनबाई कन्याशाला की, जैन विद्यार्थीओं को स्कॉलरशीप देते थे और कुलीन गरीब जैन कुटुंबोकी गुप्त सहायता भी करते थे. ये मुंबई जस्टीस आफ धी पीस थे. लगभग पचीस लाख रुपैया इन्होंने प्राप्त किया और धर्मकार्य में अच्छा धन व्यय करनेके कांक्षी थे. परंतु देवकी गति विचित्र हैं. नया विल करते करतेही आप ता. १२ फरवरी सन १८९७ को प्लेगसें चोपाटीके अपने बंगले में स्वर्गवासी हो गये. मरण समय इनका वय ५६ वर्षका था. इनको दूसरी स्त्रीसें नानाभाई और रतनचंद २ पुत्र और ३ पुत्री हुई. मी. शापुरजी की संभाल में ये पुत्र अच्छा विद्याभ्यास कर रहे हैं, और मी. नानाभाई इस छोटी उमरसें भी धर्मकार्य में अच्छा लक्ष देने लगे हैं. स्थापन ऐसे धर्मात्मा पुरुषको धन्य है, इनकी आत्माको शांति हो ! यह हमारी प्रार्थना है !!! For Private & Personal Use Only ܕܙ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878