________________
२०५
Riidillikumi
सप्तमस्तम्भः। अथ ईश्वर जैसे जगत्कों सृजता है, सो प्रश्नोत्तरोंकरके कहते हैं। लोकमें घटादि करनेकी इच्छावाला कुंभकार, घरादिस्थानमें रहकरके मृत्तिकाआदि आरंभक द्रव्यरूपकरके, और चक्रादि उपकरणोंकरके घटादिक निष्पादन करता है।ईश्वरकों सो आक्षेप करते हैं । (स्विदिति) वितर्कमें है, यावाभूमी सृजता हुआ विश्वकर्माका (अधिष्ठानं किमासीत्) आधार क्या था ? क्योंकि विना अधिष्ठानके कुछ भी नही कर सक्ता है (स्विदिति वितर्के) तर्क करते हैं, (आरंभणं कतमत् आसीत्) आरंभण क्या था? उपादान कारण क्या था? जैसें मृत्तिका घटोंका (कथा)क्रिया च किम्प्रकारा (आसीत् ) क्रिया किसप्रकार थी? निमित्त कारण क्या था ? दंडचक्रसलिलसूत्रादिकरके घटादि करते हैं, तिनसमान क्या था ? (यतः) जिससे विश्वकर्मा जिस कालमें पृथिवी और स्वर्गकों (जनयन्) रचता हुआ (महिना) स्वसामर्थ्यकरके सृष्टि द्यावापृथिवीकों (और्णोत् ) आच्छादित करता भया, कैसा विश्वकर्मा ? (विश्वचक्षाः) सर्वद्रष्टा ॥१८॥
उत्तर कहते हैं ॥ (एकः) अकेला असहायी (देवः) विश्वकर्मा (द्यावाभूमी जनयन् ) स्वर्ग और भूमिकों रचता हुआ (बाहुभ्यां) बाहुस्थानीय धर्माधर्मकरके (संधमति) संयोगकों प्राप्त होता है, (पतत्रैः) पतनशीलवाले अनित्यं पंचभूतोंकरके प्राप्त होता है, धर्माधर्मनिमित्तोंकरके पंचभूतरूप उपादानोंकरके साधनांतरके विनाही सर्व सृजन करता है, अथवा धर्माधर्मकरके च पुनः भूतोंकरके (संधमति) सम्यक् प्रकारकरके प्राप्त करता है जीवोंकों, कैसा है ? (विश्वतश्चक्षुः) सर्व ओरसें चक्षु हैं जिसके (विश्वतोमुखः) सर्व ओरसें मुख हैं जिसके (विश्वतोबाहुः) सर्व ओरसे बाहां हैं जिसके (विश्वतःपात् ) सर्व ओरसें पग हैं जिसके, सो परमेश्वरकों सर्व प्राण्यात्मक होनेसें जिस जिस प्राणीके जे जे चक्षु आदि हैं, ते सर्व तिस उपाधिवाले परमेश्वरकेही हैं; इसवास्ते सर्व जगे चक्षुआदि प्राप्त होते हैं इति. ॥ १९॥
पुनः फेर प्रश्न है (खिदिति ) वितर्कमें है ( वनं किम् आस) सो वन कौनसा था ? (उ) अपि च (सः वृक्षः कः) और सो वृक्ष कौनसा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org