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दशमस्तम्भः ।
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ऐसे वेद रचनेवाले बहुत अपठित ईश्वर बहुत ईश्वरोंके छात्र सिद्ध होवेंगे. । ऐसाही कथन १३ मंत्र में है; इससे यही सिद्ध होता है कि, बेदरचना ईश्वरकृत नही है, किंतु ब्राह्मण और ऋषियोंकी स्वकपोलकल्पना है. इति ॥
तथा तैत्तिरीयब्राह्मणमें ऐसे लिखा है.प्र॒जाप॑ति॒ सोमं॒ राजा॑नमसृजत । तं त्र॒यो वेदा॒ अव॑सृज्यन्त । तान् हस्तेऽकुरुत ।
इत्यादि - तैत्तिरीय ब्राह्मणे २ अष्टके ३ अध्याये १० अनुवाके || भाषार्थः --- प्रजापति - ब्रह्मा, सोमराजाको उत्पन्न करके पीछे तीन वेदोंको उत्पन्न करते भए; सो सोमराजा, तिन तीनों वेदोंको अपने हाथकी मुडीमें छिपा लेता भया. - इत्यादि - क्या जब ब्रह्माजीने वेद उत्पन्न करे थे, तबही किसी ताडपत्रादिउपर लिखे गये थे ? नही. तो ब्रह्माजीने तो वेद मुखसे उच्चारे होवेंगे; जब तो वेद जो ज्ञानरूप मानीये, तब तो वेद ब्रह्मात्माका ज्ञान होनेसें सोमराजाने अपने हाथकी मुट्ठीमें वेदोंको कैसें छिपा लीया ? जेकर शब्दरूप कहो, तब भी शब्द मुट्टीमें कैसें आ गया ? जेकर लिखितपत्रमय वेद मानोंगे, तब भी इतना बडा पुस्तक मुट्टीमें कैसे समा सक्ता है ? इसवास्तेही वेदके सर्वरचनेवाले सर्वज्ञ नही सिद्ध होते हैं. विशेष वेदोंका पोल और हिंसकपणा हेम्मा होवे तो, अस्मत्प्रणीतः अज्ञानतिमिरभास्करसें देख लेना चढनकी शक्ति होवे तो, वेदभाष्य, सायणाचार्यादिका करा पढके देख लेना; परंतु दयानंदसरस्वतीजीका करा भाष्य कदापि सत्य नही मानना. क्योंकि, दयानंदसरस्वतीजीने जो वेदभाष्यभूमिका, सत्यार्थप्रकाश, यजुर्वेदभाष्य, ऋग्वेदभाष्यादिमें जे अर्थ वेदकी श्रुतियोंके करे हैं, वे सर्व प्रायः प्राचीनवेदमत और वेदभाष्य सें. विरुद्ध है. यद्यपि मीमांसावार्त्तिककार कुमारिलभट्टने, तथा शंकरस्वामीने, सायणाचार्यने, महिधरादिकोंने कितनीक वेदकी श्रुतियोंके अर्थ. अपने मतानुसार उलट पुलट करे हैं; तो भी दयानंदसरस्वतीजीने जितने
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