Book Title: Tattvanirnaya Prasada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Amarchand P Parmar

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Page 799
________________ तत्त्वनिर्णयप्रासाद पूर्वपक्षः-परब्रह्मरूपकी सिद्धिही, सकलभेदज्ञान प्रत्ययोंके निरालंबन पणेकी सिद्धि है. उत्तरपक्षः-यह कथन भी तुमारा ठीक नही है, परम ब्रह्महीकी सिद्धि न होनेसें; जेकर है तो, स्वतःसिद्धि है, वा परतःसिद्धि है ? तहां स्वतःसिद्धि तो है नही, जेकर होवे, तब तो, किसीका भी विवाद न रहे; जेकर कहोगे परतःसिद्धि है तो, क्या अनुमानसें है, वा आगमसें है? जेकर कहोगे, अनुमानसें है तो, वो अनुमान कौनसा है ? पूर्वपक्षः-सो अनुमान यह है. विवादरूप जो अर्थ है, सो प्रतिभासांतःप्रविष्ट है, अर्थात् ब्रह्मभासके अंदर है, प्रतिभासमान होनेसें; जो जो प्रतिभासमान है, सो सो प्रतिभासांतःप्रविष्टही देखा है. जैसें ब्रह्म प्रतिभास स्वरूप प्रतिभासमान है, सकल अर्थ सचेतनअचेतन विवादरूप, तिसकारणसें प्रतिभासांतःप्रविष्ट है. उत्तरपक्षः-यह तुमारा अनुमान, सम्यक् नही है. (१) धर्मी, (२) हेतु, (३) दृष्टांत, इन तीनोंके प्रतिभासांतःप्रविष्ट होनेसें, साध्यरूपही हुए. तब तो (१) धर्मी, (२) हेतु, (३) दृष्टांत,इन तीनोंके न होनेसें, अनुमानही नही बनसकता है. जेकर कहोगे कि (१) धर्मी, (२) हेतु, (३) दृष्टांत, येह तीनों, प्रतिभासांतःप्रविष्ट नहीं है; तब तो इनोंहीके साथ हेतु व्यभिचारी होगा. पूर्वपक्षः-अनादि अविद्यावासनाके बलसें, हेतु दृष्टांत जो है, सो प्रतिभासके बाहिरकीतरें निश्चय करते हैं; जैसे प्रतिपाद्य, प्रतिपादक, सभा, सभापतिजनकीतरें. तिस कारणसें अनुमान भी, होसकता है; और जब सकल अनादि अविद्याका विलास दूर होजावेगा, तब तो प्रतिभासांतःप्रविष्टही, प्रतिभास होगा; विवाद भी न रहेगा. प्रतिपाद्य, प्रतिपादक, साध्य, साधन भाव भी नहीं रहेगा, तब तो अनुमान करनेका भी कुछ फल नही. आपही अनुभवमान परमब्रह्मके होते हुए, देशकाल अव्यवच्छिन्न स्वरूपके हुएथके, निर्व्यभिचार सकल अवस्था व्याप. कपणेवाले में, अनुमानका कुछ प्रयोग भी नहीं चाहिये हैं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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