Book Title: Tattvanirnaya Prasada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Amarchand P Parmar

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Page 850
________________ २३ 30 Mara पृष्ठ पक्ति अशुद्ध शुद्ध पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध १६ ओर और , १९ तितना चिरयोगी जनोंकों २४ कहे कह तितनाचिर योगीजनोंकों ७४ २६ अतीष्ट अभीष्ट शंक शंख, २५ -दाकाशः -दाकाश १११ ३ वा सना कुवासना १३-२७ देवष्भुणि देवझ्झुणि ४ सम्यक्त सम्यक्त्व श्रीमहादेब श्रीमहादेव , १२ सर्वकुंजाना; सर्वकुच्छ जाना; विबुधाचित विबुधार्चित १६-१८ परीक्षमाणा परीक्ष्यमाणा जगत्रीतयस्य जगत्रितयस्य ., २० (तब) ( तव ) पुरुषोत्तम पुरुषोत्तमः ११२ २ -षष्णैर्वि- -अण्णैर्विअयोग्य-योग्य अयोग-योग १७ -बंधः -बंधाः 'सात्यतगमने 'सातत्यगमने' ११६ १५ हरभ द्रसूरीपादैः हरिभद्मृरिपादैः समीची नही समीचीनही " २४ चन्द्राशु चन्द्रांशु अर्थवालीया अर्थवालीयां (तमस्पृशाम् ) (तमःस्पृशाम् ) उपदेशकपणे उपदेशकपणेका राग रागसें काव्य व छेद व्यवच्छेद जिनोत्तमरूप जिनोत्तमरूप ८९ २० धर्मास्तिकाय) धर्मास्तिकाय , २३ मुद्गशेलवत् मुद्गशैलबत् आ- अधर्मास्तिकाय आ- १२४ १ येवै नेया ये वैनेया ९० १९ पर्यायोंकी पर्यायोंकी , ८-९.१०.१७ सुर्वण ९०-९१ २४-२५ श्रृंग शृंग १३ बाह्य ग्राह्य १२६ २४ ऋषभदेव ऋषभदेव प्रवत्तन प्रवर्तन समुद्धत- समुद्यतपांच ज्ञानेंद्रिय, (पांच -पाली -माली (पांच ज्ञानेंद्रिय, पांच पूर्वोत्क पूर्वोक्त योग्य योग श्रीमवीर श्रीमहावीर ( भवस्तु) (भवत्सु) त्राछगया त्राछागया अथात् अर्थात् १३८ ५ गौतमऋषिने गोतमऋषिने प्रवर्त प्रवृत्त १३९ १० निरच्छयमवच्छयं निरत्थयमवस्थय मसूयान्धा मसूययान्धा अच्छावत्ती अस्थावत्ती करके १६ पदच्छ पदस्थ ९५ २७ (स्वादौ अत्यंत) (स्वादौ) अत्यंत डिच्छादिवत् डिल्थादिवत १०० १७ नही क्या? खद्योत नहीं. क्या खद्योत चद्रास्तेप्यागरी चन्द्रास्तेप्यामरी एकात एकांत १०५ १५ करता है. कराता है. १४७ १६ जगन्मनुष्याद्यम् जगन्मनुत्पाद्यम् १०७ १५ -स्वामी फेर अयोग्य आपके आपको -स्वामीमें फेर अयोग्य कालकृत् काल कृत नायोगीनाथ १५२ ९ एको एकोहं जितनाचिर योगीनाथ । १५४५ छंदासि छंदांसि २५ करको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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