Book Title: Tattvanirnaya Prasada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Amarchand P Parmar

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Page 839
________________ ७३२ तत्त्वनिर्णयप्रासादउत्तर:-चैतन्याचैतन्यकी विशेष विवक्षा न करनेसें, और द्रव्यत्वकरके अभेदबुद्धि माननेसें. अथ अपरसंग्रहाभासका लक्षण कहते हैं:-द्रव्यत्वको एकांत तत्व जो मानता है, और तिसके विशेषोंको निषेध करता है, सो अपरसंग्रहाभास है. जैसे द्रव्यत्वही तत्त्व है, और धर्मादि द्रव्य नही है. यथा वस्तु है, परंतु सामान्यविशेषत्व कहां वर्ते हैं ? ऐसेंही सामान्यविशेषात्मक वस्तुको जानना. - अथवा संग्रहनय दो प्रकारका है. सामान्यसंग्रह (१) विशेषसंग्रह (२). सामान्यसंग्रहका उदाहरण जैसे, सर्वद्रव्य आपसमें अविरोधी है. । १। विशेषसंग्रहका उदाहरण जैसे, जीव आपसमें अविरोधी है. । इतिसंग्रहद्रव्यार्थिकनयः ।। अथ व्यवहारद्रव्यार्थिक नयका स्वरूप लिखते हैं:.. “॥ संग्रहण गृहीतानां गोचरीकृतानामर्थानां विधिपूर्वकमवहरणं येनाभिसंधिना क्रियते सव्यवहारइति ॥" _ भावार्थः-संग्रहने ग्रहण किया जो सत्वादि अर्थ, तिसका, विधिसें जो विवेचन करे, सो अभिप्राय विशेष, व्यवहारनामा नय है. उदाहरण जैसें, जो सत् है, सो द्रव्य है, अथवा पर्याय है. आदिशब्दसें अपरसंग्रहगृहीतार्थ व्यवहारका भी उदाहरण जानना. जैसें जो द्रव्य है, सो जीवादि षड्विध है, इति. पर्यायके दो भेद है. क्रमभावी (१) और सहभावी (२), इति. ऐसें जीव भी मुक्त (१) और संसारी (२). जे क्रमभावी पर्याय है, वे दो प्रकारके हैं. क्रियारूप (१) और अक्रियारूप (२), इति.॥ ___ अथ व्यवहाराभास कहते हैं:-जो अपारमार्थिक द्रव्यपर्यायविभागको मानता है, सो व्यवहाराभास है. जैसें चार्वाकमत. क्योंकि, नास्तिक जीवद्रव्यादि नही मानता है. स्थूलदृष्टिसें चारभूत यावत् जितना योपर आवे, उतनाही लोक मानता है. ऐसें स्वकल्पित होनेकरके होने चार्वाकमत व्यवहाराभास है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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