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नवमस्तम्भः।
२२७ नादि अनत सर्वव्यापक मानते हैं, तो, क्या गौतमादिकोंने ये पूर्वोक्त वेदकी श्रुतियां पठन नही करी होवेंगी ? करी तो होवेंगी, परंतु युक्तिप्रमाणसें विरुद्ध मानके नवीन प्रक्रिया गौतम कणाद जैमिनीने रची मालुम होती है. प्रजापतिके कानोंसें दिशा उत्पन्न होती भई, यह भी कथन अज्ञताका है.क्योंकि, दिशा तो आकाशकाही पूर्वादि कल्पित भागविशेषका नाम है. जब नाभिसे आकाश उत्पन्न भया तो, कानोंसें दिशा क्योंकर उत्पन्न भई लिखा है ? और अरूपी दिशायोंका कोई भी उपादानकारण नहीं है, इसवास्ते यह भी कथन मिथ्या है. इतिसमीक्षा ॥
इत्याचार्यश्रीमद्विजयानन्दसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादे ऋगादिसृष्ट्यनुक्रमसमीक्षावर्णनोनामाष्टमः स्तम्भः॥८॥
॥ अथ नवमस्तम्भारम्भः॥ अष्टमस्तंभमें ऋगादिसृष्टिक्रमकी समीक्षा करी, अथ नवमस्तंभमें वेदके कथनकी परस्पर विरुद्धता संक्षेपरूपसें दिखाते हैं.
तमिद्गर्भम्प्रथमं दध्र आपो यत्र देवाः समगछन्त विश्व॥ अजस्य॒ नाभावध्यकमार्पित यस्मिन् विश्वानि भुवनानि तस्थुः।।
॥ य० वा० सं० अ० १७ मं० ३०॥ भाषार्थः-(अ) * (तमिद्गर्भ प्रथमं दध्र आपः) प्रथमं अर्थात् संपूर्णसृष्टिकी आदिमें (आपः-जलानि ) जल जो हैं सो वह (तमित्गर्भ) तिस प्राप्त गर्भकों (द ) धारण करते भये कि (यत्र देवाः समगछन्त विश्वे) जिस संपूर्ण विश्वके कारणभूत गर्भरूप ब्रह्माजीमें संपूर्ण देवता उत्पन्न हो कर व्याप्त हो रहे हैं सो (अजस्य नाभावध्येकमर्पितं ) जन्मादिसें जो रहित सो कहावे अज ऐसा जो परमात्मा तिसकी नाभीमें अर्पित जो कमल तिसमें संपूर्ण विश्वका
* जहां ( अ ) ऐसा संकेत होवे वहां ब्रह्मकुशलोदासीकृतऋगादिभाष्यभूमिकेंदु नाम पुस्तकका लिखित भाषार्थ जानना ॥
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