Book Title: Syadvad Manjari
Author(s): Hemchandracharya, Mallishensuri, Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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नानाजीवप्रदत्ताशीर्वादमाहात्म्यकल्पाऽवधिस्थायिविशदयशःशरीरेण ।। निरवद्यचातुर्विद्य निर्माणैकब्रह्मणा श्रीहेमचन्द्रमूरिणा । ८ । जगत्प्रसिद्धश्रीसिद्धसेनदिवाकरविरचितद्वात्रिंशद्वात्रिंशिकानुसारि श्रीवर्द्धमानजिनस्तुतिरूपमयोगव्यवच्छेदाऽन्ययोगव्यवच्छेदाऽभिधानं द्वात्रिंशिकाद्वितयं विद्वज्जनमनस्तत्वाऽवबोधनिबन्धनं विदधे । ९ । तत्र च प्रथमद्वात्रिंशिकायाः सुखोन्नेयत्वाद्व्याख्यानमुपेक्ष्य द्वितीयस्यास्तस्या निःशेषदुर्वादिपर्षदधिक्षेपदक्षायाः कतिपयपदार्थविवरणकरणेन स्वस्मृतिबीजप्रबोधविधि(वधीयते । १० । तस्याश्चेदमादिकाव्यम् ।।
करेला, एवा श्रीकुमारपाळराजाए प्रवर्तावेला अभयदान नामना जीवाडनारां औषधथी जीवेला विविध प्रकारना जीवोए दीधेला आशीर्वादना माहात्म्यथी छेक कल्पांतकाळमुधि स्थिर रहेनारुं छे यशरूपी शरीर जेमनु एवा। ७ । दूषणरहित एवी (लक्षण, साहित्य, तर्क अने आगम) नामनी चारे विद्या बनाववामां एक ब्रह्मासरखा, एवा श्रीहेमचंद्र नामना आचार्य महाराजे । ८ । जगतमा प्रख्याती पामेला श्रीसिद्धसेनदिवाकरजीए रचेली बत्रीसवत्रीसीओने अनुसरीने श्रीवर्धमानप्रभुनी स्तुतिरूप 'अयोगव्यवच्छेदिका अने अन्ययोगव्यवच्छेदिका नामनी बे बत्रीसीओ बनावी छे, के जे विद्वान् माणसोना मनने तत्वोनुं ज्ञान कराववामां कारणभूत छे, । ९ । हवे तेमां पेहेली द्वात्रिंशिका ( बत्रीसी ) सुखे समजाय तेवी होवाथी तेनुं व्याख्यान छोडीने, सर्व दुर्वादिओनी सभानु खंडन करवामां समर्थ, एवी ते बीजी बत्रीसीना केटलाक पदार्थोनुं विवेचन करवावडे करीने मारी याददास्तीना (मारा संस्कारना) बीजना ज्ञाननी विधि हुं करूंछु । १० । ते बीजी द्वात्रिंशिकानुं आ पहेलु काव्य छे.
१ लक्षणागमसाहित्यतर्वाश्चातुर्विद्यम् ।

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