Book Title: Syadvad Manjari
Author(s): Hemchandracharya, Mallishensuri, Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 9
________________ ॥ नमः सर्वज्ञाय ॥ aose (गुर्जरभाषांतरोपेता) ॥ स्याहादमंजरी ॥ .. (मूलकर्ता-श्री हेमचंद्राचार्य. टीकाकार-श्री मल्लिषेणसूरि.) (गुजरातीभाषांतरकर्ता-पं० श्रा हीरालाल हंसराज.) ~ ~ यस्य ज्ञानमनन्तवस्तुविषयं यः पूज्यते दैवतै । नित्यं यस्य वचो न दुन्नयकृतैः कोलाहलै प्यते ॥ रागद्वेषमुखा द्विषां च परिषत् क्षिप्ताक्षणायेन सा । स श्रीवीरविभुर्विधूतकलुषां बुद्धिं विधत्तां मम ॥ १ ॥ निस्सी - अर्थः-श्रीजिनायनमः ॥ श्रीशांतिनाथस्य नवाननेंदु-भूयाजनानां प्रमदाब्धिवृद्धयै । यत्रोदिते वै परतीर्थनाथ-स्तेनाऽभिलाषाःप्रययुर्विनाशम् ॥ १ ॥ सत्याऽसत्योरुदुग्धोदककलविधिविद्धंसराजात्मनेन । हीरालालेन भक्त्या खपरहितकृते गुर्जराख्योरुवाचा ॥ अर्थो मुग्धप्रबोधप्रकटनसबलो गुंफ्यते न्याययुक्त्या। ग्रंथस्याऽस्येह चारि-त्रविजयगुरुतः सुप्रसादान्मनोज्ञः ॥ २ ॥ अनंतवस्तुओना विषयवाळू जेमनुं ज्ञान छे, तथा जे देवोथी पूजाय छे अने जेमनुं वचन अन्यायवादिओए करेला कोलाहलोथी लोपातुं नथी, तथा रागद्वेष छे मुख्य जेमां एवा अंतरंग शत्रुओनी ते प्रसिद्ध समाने जेमणे क्षणवारमांज पराभव आपलो छे, एवा ते श्रीवीरप्रभु मने निर्मळ बुद्धि आपो ? ॥१॥ अपार बुद्धिना एक जीवितने धारण

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