Book Title: Syadvad Manjari
Author(s): Hemchandracharya, Mallishensuri, Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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शयाः प्रतिपादितास्तत्राऽनन्तविज्ञानमित्यनेन भगवतः केवलज्ञानलक्षणविशिष्टज्ञानाडानन्त्यप्रतिपादनाज् ज्ञानाऽतिशयः । १७ । अतीतदोषमित्यनेनाऽष्टादशदोष संक्षयाऽभिधानादपायापगमाऽतिशयः । १८ । अबाध्यसिद्धान्तमित्यनेन कुतीथिकोपन्यस्तकुहेतुसमूहाऽशक्यबाधस्याद्वादरूपसिद्धान्तप्रणयनभणनाद्वचनाऽतिशयः । १९ । अमर्त्यपूज्यमित्यनेनाऽकृत्रिमभक्तिभरनिर्भरसुराऽसुरनिकायनायकनिर्मितमहाप्रातिहार्यसपर्यापरिज्ञापना
श्रीवर्धमानप्रभुना (उपर कहेला चारे ) विशेषणोद्वाराए चार मूळ अतिशयो, अंगीकार करेला छे ; अने तेमां अनंतविज्ञान (एटले अनंतविज्ञानवाळा ) एम कहीने प्रभुना केवलज्ञानना लक्षणवाळां ज्ञाननु अनंतपणुं अंगीकार करवाथी 'जानातिशय ' ( नामनो पेहेलो अतिशय जणाव्यो छे.)। १७ । 'अतीतदोष ' ( एटले दोषविनाना) एम कहीने अढारे दोषोनो' सम्यक् प्रकारे क्षय कहेवाथी ‘अपायापगमातिशय' (नामनो बीजो अतिशय जणाव्यो छे.)। १८ । 'अबाध्यसिद्धांत' (एटले बाधारहित सिद्धांतवाळा) एम कहीने कुतीर्थीओए स्थापन करेला जूठा हेतुओना समूहथी जेने बाधा पहोंची शकती नथी, एवा स्याद्वादरूप सिद्धांतनी (प्रभुनी ) रचना कहेवाथी (तेमनो) ' वचनातिशय' (नामनो त्रीजो अतिशय जणाव्यो छे.)। १९ । ' अमर्त्यपूज्य' (एटले देवोने पूजनीक ) एम कहीने खास अंतःकरणनी भक्तिना समूहथी परिपूर्ण थाला देवदानवोना समूहना स्वामिओए (इंद्रोए) करेली महाप्रातिहार्यनी पूजाना जणाववाथी (प्रभुनो) 'पूजातिशय'
१ अंतरायदानलाभ-वीर्यभोगोपभोगगाः । हासो रत्यरती भीति-र्जुगुप्सा शोक एव च ॥१॥ कामो मिथ्यात्मज्ञानं-निद्राचाविरतिस्वथा । रागो द्वेषश्च नो दोषा-स्तेषामष्टादशाप्यमी ॥२॥

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