Book Title: Syadvad Manjari
Author(s): Hemchandracharya, Mallishensuri, Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 14
________________ त्पूजाऽतिशयः ।२०।अत्राह परः । अनन्तविज्ञानमित्येतावदेवास्तु नाऽतीतदोषमिति । गतार्थत्वादोषाऽत्यत्यं विनाऽनन्तविज्ञानत्वस्याऽनुपपत्तेरस्रोच्यते । २१ । कुनयमताऽनुसारिपरिकल्पिताप्तव्यवच्छेदार्थमिदं । २२ । तथाचाहुराजीविकनयाऽनुसारिणः ॥ ज्ञानिनो धर्मतीर्थस्य । कर्तारः परमं पदं ॥ गत्वाऽागच्छन्ति भूयोऽपि । भवं तीर्थनिकारतः । इति । तन्नूनं न ते अतीतदोषाः। कथमन्यथा तेषां तीर्थनिकारदर्शनेऽपि भवाऽवतारः।२३॥ आह।यद्येवमतीतदोषमित्येवाऽस्तु अनन्तविज्ञानमित्यतिरिच्यते । दोषाऽत्ययेऽवश्यंभावित्वादनन्तविज्ञानत्वस्य । २४ । न । कैश्चिद्दोषाऽभावेऽपि त(नामनो चोथो अतिशय जणाव्यो छे.) । २० । अहीं वादी शंका करे छे के (प्रभुन ) ' अनंतविज्ञानवाळा' एटलुंज विशेषण रहेवा दो ? पण 'दोषविनाना' ए विशेषणनी जरूर नथी, केमके तेनो समावेश उपरना विशेषणमां आवी जाय छे ; कारणके दोषोना नाशविना अनंतविज्ञानपणानी प्राप्ति थती नथी. (हवे ते शंकाना खुलासामाटे) अहीं कहे छे. । २१ । जूठा न्यायवाळा मतने अनुसरनाराओए कल्पेला आप्तने जूदा पाडवामाटे आ विशेषण आप्युं छे. । २२ । केमके आजीविक मतने अनुसरनारा तेवी रीते (नीचे प्रमाणे) कहे छे. 'धर्मतीर्थना करनारा जानीओ मोक्षमा जइने, फरीने पण पोताना तीर्थनी हानीथी (तिरस्कारथी ) अर्थात् पोताना तीर्थनो तिरस्कार थतो जोइने संसारमा आवे छे (फरी अवतार ले छे) माटे खरेखर तेवा (ज्ञानीओ) दूषणोविनाना नथी ; अने जो तेम न होत तो (पोताना) तीर्थनो तिरस्कार जोइने पण तेओ संसारमां शामाटे अवतार लेत ? । २३ । वळी वादी कहे छे के, जो एम होय तो 'दोषविनाना' एटलुन विशेषण रहेवा दो ? पण त्यारे 'अनंतविज्ञानवाळा' ए विशेषण वधारे पडतुं छे (नकामुं छे.) केमके दोषोनो विनाश थवाथी 'अनंतविज्ञानपणुं' अवश्यन

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