Book Title: Syadvad Manjari
Author(s): Hemchandracharya, Mallishensuri, Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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......२ - -- मप्रतिभैकजीवितधरौ निःशेषभूमिस्पृशां । पुण्यौघेन सरस्वतीसुरगुरू स्वाहैकरूपौ दधद् ॥ यः स्याद्वादमसाधयन्निजवपुर्दृष्टान्ततः सोऽस्तु मे । सद्बुद्धयम्बुनिधिप्रबोधविधये श्रीहेमचन्द्रः प्रभुः ॥ २ ॥ ये हेमचन्द्रं मुनिमेतदुक्तग्रन्थार्थसेवामिषतः श्रयन्ते । सम्प्राप्य ते गौरवमुज्ज्वलानां पदं कलानामुचितं भवन्ति ॥३॥ मातर्भारति सन्निधेहि हृदि मे येनेयमाप्तस्तुते । निर्मातुं विवृति प्रसिद्धयति जवादारम्भसम्भावना ।। यद्वा विस्मृतमोष्ठयोः स्फुरति यत्सारस्वतः शास्वतो । मन्त्रः श्रीउदयप्रभेतिरचनारम्यो ममाहनिशम् ॥ ४ ॥ । ५ । इह हि विषमदुःषमाररजनितिरस्कारभास्करानुकारिणा । ६ । वसुधातलाऽवतीर्णसुधासारिणीदेश्यदेशनावितानपरमाईतीकृतश्रीकुमारपालक्ष्मापालप्रवर्तिताऽभयदानाऽभिधान जीवातुसंजीवित
करनार एवा सरस्वती अने बृहस्पतिने सर्व प्राणीओना पुण्यना समूहवडे पोताना एक अंगरूपे धारण करनारा, तथा जेमणे पोताना शरीरना दृष्टांतथी स्याद्वादने साधेलो छे, ते श्रीहेमचंद्रनी महाराज मारा सद्धद्धिरूपी समुद्रना उल्लास माटे थाओ ? ॥ २ ॥ जे माणसो आ चालता ग्रंथना अर्थनी सेवाना मिषथी श्रीहेमचंद्रजी महाराजनो आश्रय करे छे, तेओ ( स्याद्वादरूप न्यायविषयमां) महत्ता पामीने निर्मळ कळाओना योग्य स्थानकरूप थाय छे. ॥ ३ ॥ हे सरस्वती माता ! तुं मारा हृदयमां निवास कर ? के जेथी आ यथार्थवक्तानी स्तुतिनी टीका करवाना प्रारंभनी संभावना तुरत सिद्ध थाय ; अथवा मने विस्मृति थइ ! केमके 'श्रीउदयप्रभ' एवी रचनाथी मनोहर थएलो ( अर्थात् ते नामरूपी) शास्वतो सरस्वती संबंधि मंत्र तो मारा होठउपरे हमेशां स्फुरायमान थइ रह्यो छे ! ॥ ४ ॥ । ५। अहीं भयंकर दुःखम नामना (पांचमा ) आरारूपी रात्रिने दूर करवामां सूर्यसरखा । ६। तथा पृथ्वीतलउपर उतरेली अमृतनी नेहेरसरखी देशनाना समूहथी परम जैनी

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