Book Title: Swapnadravya Devdravya Hi Hai Author(s): Kanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya Publisher: Vishvamangal Prakashan Mandir View full book textPage 8
________________ सकता'-ऐसी भ्रमणा रखने वालों तथा 'गुरु पूजन का द्रव्य गुरु को वैयावृत्य के खाते में ले जाया जा सकता है-'ऐसी मिथ्या धारणा वाले वर्ग को यह चतुर्थ खण्ड अवश्य पढ़ना चाहिये और यह समझ लेना चाहिये कि-'गुरुपूजन हो सकता है और गुरु की नवांगी पूजा भी हो सकती हैं । इसमें द्रव्य (पैसा) रखने की परम्परा शास्त्रसिद्ध है । साथ ही गुरुपूजन का यह द्रव्य देवद्रव्य ही गिना जाता है, इसे वैयावृत्य के खाते में नहीं खताया जा सकता। . . आजकल देवद्रव्य के पैसे से निर्मित चालियों और भवनों में रहने की प्रथा बढ़ती जा रही है। स्वप्नद्रव्य को देवद्रव्य गिनने वाले संघों का अधिक प्रमाण होते हुए भी स्वप्नद्रव्य को साधारण में ले जाने की अशास्त्रीय विचारधारा सर्वथा सुखी नहीं है । देवद्रव्य के पैसों को कई जैन ब्याज से वापरने लगे हैं और गुरुपूजन के पैसों को गुरु के वैयावृत्य खाते में खताने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में 'स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ही है'इस पुस्तक का सर्वजनोपकारी सम्पादन-संकलन करके सुप्रसिद्ध वक्ता प्रशान्त मूर्ति सिद्धहस्त साहित्यकार परम पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजयकनकचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज ने जैन जगत् को एक महत्त्वपूर्ण एवं मननीय मार्गदर्शन दिया है, ऐसा कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। __इस पुस्तक के संपादन-संकलन में पू. आचार्यदेवश्री ने सारे भारत के संघों को मननीय मार्गदर्शन देने की कल्याणकामना से जो परिश्रम किया है उसे तो इस पुस्तक का सांगोपांग वाचन करने वाला ही समझ सकता है ! पू. आचार्यदेव के शिष्यरत्न श्रुतोपासक पू. उपाध्यायजी श्री महिमाविजयजी महाराज के सदुपदेश से स्थापित संस्था 'श्री विश्वमंगल प्रकाशन मन्दिर, • पाटण, इस पुस्तक के प्रकाशन में' निमित्त बना है, यह आनन्द की बात है। संस्था के द्वारा आज तक प्रकाशित पुस्तकों कीPage Navigation
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