________________
हैं. जैसे-जलौका, पूरे, काष्ट कीट, विष्टाके कीट, गंडोये और समुद्रमें उत्पन्न होनेवाले शंख, कौड़ी, शुक्ति आदि. इनका आयु न्यूनसे न्यून अंतर्मुहूर्त और अधिकसे अधिक द्वादश वर्ष तकका हो सकता है । शरीरमान न्यूनसे न्यून पृथिवीके जीव जितना और अधिकसे अधिक द्वादश योजन । त्रीद्रिय उसको कहते हैं, जिसके-स्पर्श, रसना और घ्राण ये तीन इंद्रिय हों । इनमें अनेक प्रकारकी पिपीलिका (कीड़ी) यूका, लिक्षा, माकड़, इंद्रकीट ( वीरबहुटी) आदिकी गणना की जाती है। इनके आयुका प्रमाण न्यूनसे न्यून अंतर्मुहूर्तका और अधिकसे अधिक ४९ दिनका होसकता है । मध्य आयुकी स्थितिका कुछ नियम नहीं । इनका शरीर प्रमाण कमसे कम पृथिव्यादिके जीव जितना और अधिकसे अधिक तीन कोसका हो सकता है। मध्यम प्रमाणकी स्थिति नहीं । एवं स्पर्श, रसना, प्राणं
और चक्षु इन चार इंद्रियोंसे जो युक्त हो उसको चतुरिद्रिय कहा है । मक्खी, मच्छर, भ्रमर, पतंग, बिच्छु आदि जीव चतुरिद्रियमें गिने जाते हैं । इनका आयुमान भी न्यूनसे न्यून अंतर्महूर्तका है और अधिकसे अधिक छ मासका होसकता है। एवं इनका शरीर न्यूनसे न्यून अंगुलीका असंख्य भाग और अधिकसे अधिक एक योजनका होसकता है । मध्यम शरीरके परिमाणका कुछ नियम नहीं, चाहे कितना हो । जिनके पांचवीं श्रोत्र इंद्रिय होवे वे पंचेंद्रिय जीव कहे जाते हैं । इनमें मनुष्य, पशु, पक्षी आदिकी गणना की जाती है । इनका आयुमान तथा शरीरमान एवं अवांतर भेद जैनशास्त्रमें जुदा जुदा लिखा हुआ है । यहांपर यदि उन सबका उल्लेख किया जाय तो बहुत विस्तार हो जाय । यहां पर तो उतना ही लिखना आवश्यक समझा है कि, जितनेको 'स्वामीदयानंदजी'..