Book Title: Swami Dayanand aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Shastri
Publisher: Hansraj Shastri

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Page 107
________________ ९९ है ! इतना ही नहीं इसने उनके जीवन के प्रत्येक विभागका फोटो रौंचकर भी मध्यस्थ समाजके सामने रख दिया है !1 सज्जनो ! अपने मुखसे अपनी बड़ाई करनी किसका - नाम है, यह बात हम स्वामीनी के ही लेखसे आपको बतलातें - हैं | सत्यार्थ प्रकाशके पृष्ठ १७९ में हमारे माननीय स्वामींजी - महाराज लिखते हैं-- [ " ईश्वर सबको उपदेश करता है "कि, हे मनुष्यो ! मैं ईश्वर सबके पूर्व विद्यमान सब जगत् का “पति हूं, मैं सनातन जगत्का कारण और सब धनोंका विजय ." करनेवाला और दाता हूं, मुझहीको सब जीव जैसे पिताको ."" संतान पुकारते हैं वैसे पुकारें, मैं सबको सुख देनेहारे जगत् " के लिये नाना प्रकारके भोजनोंका विभाग पालनके लिये · 4 *" करता हूं ॥३॥ मैं परमैश्ववार्यन् सूर्य के सदृश सब जगत्का “" प्रकाशक हूं, कभी पराजयको प्राप्त नहीं होता और न कभी मृत्युको प्राप्त होता हूं, मैं ही जगत्रूप धनका निर्माता हूं "" सब जगत् की उत्पत्ति करनेवाले मुझकोही जानो, हे जीवो ! "" ऐश्वर्य प्राप्तिके यत्न करते हुए तुम लोग विज्ञानादि धनको मुझसे मांगो और तुम लोग मेरी मित्रतासे अलग मत होओो । " हे मनुष्यो ! मैं सत्य भाषण रूप स्तुति करनेवाले मनुष्यको सनातन ज्ञानादि धन देता हूं, मैं ब्रह्म अर्थात् '"" वेदका प्रकाश करने हारा और मुझको वह वेद यथावत् 46 41 कहता उससे सबके ज्ञानको मैं बढ़ाता, मैं सत्पुरुषका प्रेरक *" यज्ञ करने हारेकों फळ प्रदाता और इस विश्व में जो कुछ ܀ *" है उस सब कार्यका बनाने और धारण करनेवाला हूं इसलिए तुम लोग मुझको छोड़ किसी दूसरेको मेरे स्थानमें मत * पूजो मत मानो और मत जानो " ] 66

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