Book Title: Swami Dayanand aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Shastri
Publisher: Hansraj Shastri

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Page 148
________________ १४० क्योंकि श्रावण भाद्रपदके महीने में नेत्र हीन हुआ मनुष्य सर्वत्र हरा ही हरा देखता है ! उसका यह दोष स्वभावकी तरह अनिवार्य है !! निष्पक्ष जनता के हृदय में: इस प्रकार के संकीर्ण विचारोंको स्थान नहीं मिलता यह खुशीकी बात है। पाठकों को इस बातका स्मरण रहे कि हमारे इस कथन में अन्यान्य विद्वा. नोंके अतिरिक्त कितनेक निप्पक्ष आर्यसमाजी विद्वान् भी सहानुभूति धराते हैं । उदाहरण के लिए " महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती और उनका काम " नामी किताब में हमारे भारत प्रेमी श्रीयुत लाला लाजपतरायजी लिखते हैं . " हमको भलीभांति विदित है, कि स्वामी " दयानंद सरस्वतीने अपने जीवनमें कइ वेर - "अपनी सम्मतियें पलटी । एक समय था कि "वह शिवमतको प्रतिपादन करते थे, और "रुद्राक्ष और कंठीमाला धारते थे । फिर एक " समय आया कि उसका खंडन करने लगे । ""एक समय था कि वह ( देखो चांदापुरका "वाद ) मोक्षकी अवधि नहीं मानते थे । और. "उनको निश्चय था कि मुक्त हुई आत्मा फिर " देह धारण नहीं करती । फिर वह समय " आया कि उन्होंने अपनी सम्मति पलट दी " आदि आदि । किसको विदित है कि यदि " वह जीते रहते तो अपने जीवनमें और क्या.

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