Book Title: Swami Dayanand aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Shastri
Publisher: Hansraj Shastri

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Page 153
________________ .! क्या ही अच्छा होता जो उक्तं श्लोकका अर्थ नहीं समझप्रथम किसी योग्य जैन विद्वान्से समझ लेते । परंतु भनक प्रथःकरनेसे शायद उनकी महती प्रतिष्टाको कोई धक्का इतना अर अस्तु अब हम उक्त श्लोक का यथार्थ पाठ और वेदमिसे रेल ठीक अर्थः पाठकोंको बतलाते हैं ! भ " न भुक्ते केवली न स्त्री, मोक्षमति दिगंबराः। माहुरेषामयं भेदो, महान् श्वेताम्बरैः सह " भा०-(केवली न भुक्त) केवली-तत्वज्ञानी भोजन नहीं करता, और (स्त्री मोक्षं न एति) स्त्री मोक्षको प्राप्त नहीं होती, ऐसे (दिगंबराः प्राहुः ) दिगंवर लोग कहते हैं (श्वेतांबरैः सह) श्वेताम्बरोंके साथ ( एषां) इनका-दिगंबरोंका (अयं) यह ( महान् भेदः ) बड़ा भेद है. अर्थात् जैन धर्मकी श्वेताम्बर और दिगंवर इन दो शाखाओंमें बड़ा भारी अंतर इतना ही है कि श्वेतांबर लोग तत्वज्ञानीका भोजन करना और चारित्र (सन्यासव्रत)के पालनेसे कर्म क्षय द्वारा स्त्रीका मुक्त होना मानते हैं, और दिगंबर लोग उक्त दोनो बातें स्वीकार नहीं करते । पाठकोंको यहांपर इतना और भी स्मरण रहे कि उक्त लोकमें केवली के स्थानमें जो स्वामीजीने केवलं लिख मारा है वह सर्वथा जैन सिद्धान्तसे विरुद्ध और अशुद्ध है ! कदापि, केवळं पाठ ही स्वीकार किया जावे तो भी स्वामीजीने " दिगंबर लोग स्त्रीका संसर्ग नहीं करते" " श्वेतांबर करते हैं" । " इत्यादि वातोंसे मोक्षको प्राप्त होते हैं " यह किन अक्षरोंका अर्थ किया सो तो स्वामीजी जाने, या गुरुकुलके नये कणाद, "पतंजलि, या, गौतम व्यास ! क्योंकि, स्वामीजीके वेद भाष्योंकी शेषपूर्ति अब उन्हीपर अवलंबित है !

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