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- अब हम स्वामीजीके दूसरे कथनपर कुछ विचार करते हैं। स्वामीजी फर्मात हैं कि विचारकर देखें तो अच्छे पुरुषको जैनियोंका संग करना वा उनको देखना भी बुरा है क्योंकि इन महा हठी दुराग्रही मनुष्यों के संगसे सिवाय बुरा इयोंके अन्य कुछ भी पल्ले न पडेगा"
सजनो ! स्वामीजी, जैनोंका संग तो दर किनार, दर्शन तकमें भी बुराई बसलाते हैं। इसका कारण उनके कथनानुसार जैनोंका हठ और दुराग्रह है ! परंतु जैनोंके दर्शन तकमें भी पाप कहना यह निष्पक्ष भावसे है या दुराग्रहसे ? यह भी विचारणीय है। जैनों के संग और दर्शनसे अन्य मनुप्योंके सिवा स्वामीजीमें कितनी बुराई आई होगी इस बातका अनुभव उन्होंने ही किया होगा । परंतु शोक है कि, स्वामीजी जल्दी ही कूच कर गये ! ! यदि वे कुछ काल और जीते रहते तो संभव था कि, जिस प्रकार उन्होंने अपने (माने हुए) अन्य कितनेक सिद्धांतोंको ( उनकी बुद्धिके अनुसार असंगत होनेके कारण) उथला पुथला दिया। इसी प्रकार उनकी, जैन तथा इतर धर्माचार्योंको हठी दुराग्रही और झूठे दुकान दार आदि, बीभत्स शब्द कहनेकी बुरी आदत भी बदल . जाती ! और जिस द्वेष और दुराग्रहसे उन्होंने जैनोंके दर्शनमें भी पाप बतलाया है शायद वह जड़ मूलसे ही उखड जाता !!! क्योंकि भ्रमयुक्त मनुष्य कितनीक अस्त व्यस्त बातें भी कह डालता है। भ्रमके दूर हो जानेपर उन्हें दोषरूप समझकर वह त्याग भी देता है। इसी प्रकार स्वामी दयानंदजीके संबंध समझना चाहिए । परंतु स्वामी दयानंद सरस्वतीजी सर्वथा निश्रीन्त थे, उनमें अंधेरा नाम मात्रको भी नहीं था, इस प्रकारके अंध श्रद्धालुओंके विषयमें हम कुछ नहीं कह सकते !