Book Title: Swami Dayanand aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Shastri
Publisher: Hansraj Shastri

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Page 114
________________ १०६ सज्जनो ! संसारके प्रचलित धर्मों से हरएक धर्मने अपने २ सांप्रदायिक कृत्योंके अनुष्ठानके लिए वर्षभर में कितनेक दिन निश्चित कर रखे हैं. जैसे कि, हिंदु सनातन धर्मियोंमें दुर्गानवमी, विजयादशमी, दीवाली, होली, पंचभीष्म, नागपंचमी आदि । जैनोंमें पर्युषणा (पजोसण ) आदि । मुसलमानोंमें ईद और रोजे वगैरह । पारसियोंमें पतेती वेइमनजशन आदि। ईसाइयोंमें बड़े दिन अप्रेल फुल आदि । ये प्रायः पर्वके नामसे ही प्रसिद्ध हैं, जिनका दूसरा नाम त्योहार भी कहनेमें आता है. षष्टि शतकके रचयिताने किसी अपेक्षासे इनको धार्मिक और अधार्मिक इन दो भागोंमें विभक्त किया है. उसका कथन है कि, जिनमें किसी भी निरपराध प्राणिकी हिंसा करनेमें न आवे, और सात्विक श्रद्धामय धर्मका प्रचार करनेमें आवे; वे “धार्मिक पर्व हैं. और जिनमें धार्मिक प्रवृत्तियों के बदले केवल निरपराध प्राणियोंका गला काटकर खुशी मनाई जावे ! उनकी अधार्मिक पर्यों में ही गणना करनी उचित है ! हमारे पाठक इस वातसे अपरिचित न होंगे कि, 'हिंदुओ, मुसलमानो, और ईसाइयोंमें कितनेक ऐसे त्योहार पर्व पाये जाते हैं कि, जिनमें धर्मके नामसे सैंकड़ों अनाथ 'प्राणियोंके कोमल गलों पर बड़ी निर्दयतासे छुरी फेरी जाती है ! इस प्रकारके पर्वो और उनके उपदेशोंका जैनोंने इस हेतुसे प्रतिवाद किया है कि, इन दिनों में इस तरहके अधार्मिक कृत्य होते हैं, यदि इन दिनोंमें भी धर्म संबंधी ही कार्य किये जावे तब तो इनको धार्मिक पर्व कहने और उनके 'उपदेष्टाओंको धर्मात्मा स्वीकार करनेमें जैनोंको किसी प्रकार का भी आग्रह नहीं. वस्तुतः होना भी ऐसा ही चाहिए. उक्त ग्रंथके रचयिताका कथन केवल अशुद्ध प्रवृत्तिको लेकर है,

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