Book Title: Swami Dayanand aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Shastri
Publisher: Hansraj Shastri
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मांग क्या दे तुझकों कोशा वोली *यह क्या हमने दुष्कर कर्म किया ? जिस्से (जिससे ) तुम इतने खुश हुए, यह नाचना दुष्कर नहीं है, न वाणसे आम तोडना दुष्कर है, दुष्कर तो वह है जो कि स्थूलभद्र मुनिने किया. यह (इस ) स्थूलभद्रने पहले बारह वर्ष हमारे साथ अनेक भोगभोगे पीछे दीक्षा पाय ( सन्यास-त्रत ग्रहण कर ) चारित्र पालते हुए हमारे इहां चतुर्मास वास किया हमने अनेक कामचेष्टा किया (की) तो भी उनके मनको कुछ भी विकार छुय नहीं गया (हमारी अनेक प्रकारकी कामचेष्टाओंसे भी स्थूलभद्रके मनमें किंचित विकार उत्पन्न नहीं हुआ) इतना
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* सोवाच किं मयाकारि, दुष्करं येन रजितः। इदमप्यधिकं नानात्, किमभ्यासेन दुष्करन् ! ॥ १७८ ॥ किचानलुम्बीछेदोयं, नृत्तं चेदं न दुष्करन् । आशिक्षितंत्थूलभद्रो, यचक्रे तत्तु दुष्करल ! ॥ १७९ ॥ अभुक्त द्वादशान्दानि, भोगान्यत्र सनं मया। तत्रैव चित्रशालाया-मत्यात्तोखंडितवतः ! ॥ १८०॥ दुग्धं नकुलसञ्चारा-दिव स्त्रीणां प्रचारतः। योगिनां दुष्यते चेतः, त्थूलभद्रनुनि विना ! ।। १८१ ॥ दिनमेकमपि त्यातुं, कोऽलं स्त्रीसन्निधौ तथा। चातुर्मानी यथाऽतिष्ठत्, त्यूलभद्रोऽक्षततः । ॥ १८२ ।। आहारः पतश्चित्र-शालावासोऽङ्गनान्तिके। अप्येक व्रत लोपाया-ऽन्यत्य लोहतनोरपि !।। १८३ ॥ विलीयन्ते धातुमयाः, पार्श्वे वहेरिख त्रियाः । सतु वनमयो मन्ये, स्थूलभद्रनहानुनि ! ॥ १८४ ॥ स्थूलभद्रं महासत्त्वं, कृतदुष्करदुष्करम् ।। : व्यावर्णयुक्षा नुट्रैव, मुखे वर्णातुं परम् ! ॥ १८५ ॥ -
• . [ इत्यादि परिशिष्टपणि ]

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