Book Title: Swami Dayanand aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Shastri
Publisher: Hansraj Shastri

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Page 86
________________ ७८ और भक्तमाल ग्रंथ जो नाभा डूमने बनाया है उनमे लिखा है-" विक्रीय सूर्प विचचार योगी" इत्यादि वचन.चक्रांकितोंके ग्रंथोंमें लिखे हैं शठकोप योगी सूपको बना वेचकर विचरता · था अर्थात् कंजर जातिम उत्पन्न हुआ था उसने ब्राह्मणोंसे पढ़ना वा सुनना चाहा होगा तब ब्राह्मणों ने तिरस्कार किया होगा उसने ब्राह्मणों के विरुद्ध संप्रदाय तिलक चक्रांकित आदि शास्त्रविरुद्ध मनमानी बातें चलाई होंगी उसका चेला मुनिवाहन जो चंडाल वर्णमें. उत्पन्न हुआ था उसका चेला " यावनाचार्य" जो कि यवन कुलोत्पन्न था जिसका नाम बदलके कोई२ यामुनाचार्य भी कहते हैं उनके पश्चात् रामानुन ब्राह्मण कुलमें उत्पन्न होकर चक्रांकित. हुआ । इत्यादि [सत्या० प्र० पृ० ३०४] [९]" शैव मतवालोंकी प्रशंसा !" प्रश्न-शैव मतवाले तो अच्छे होते हैं ? उत्तर-अच्छे कहांसे होते हैं ? " जैसा प्रेतनाथ वसौ भूतनाथ " जैसे वाममार्गी मंत्रोपदेशादिसे उनका धन हरते वैसे शैव भी “ ॐ नमः शिवाय ". इत्यादि पंचाक्षरादि मंत्रोंका उपदेश करते रुद्राक्ष. भस्म धारण करते मट्टीके और पाषाणादिके लिंग. बनाकर पूजते हैं और हर२ बं बं और वकरके शब्द समान बड़े ३ मुखसे शब्द करते हैं | इत्यादि [ सत्या० प्र० पृ. ३५० ] [१०] " वैष्णवोंकी प्रशंसा!" प्रश्न-वैष्णव तो अच्छे हैं ?

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