Book Title: Stuti Tarangini Part 03
Author(s): Bhadrankarsuri
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan
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२९६
स्तुति तरंगिणी
केशे कमलसवारिधि - निमहिमकमलो विभाति शान्तिजिनः । अन्याद्याराग कमल ग्राही माया कमलमत्याः
॥१६॥
॥ १८॥
कमलं चक्रे कुन्थुः सहस्रकमलाभिधान गिरिराजः । कमलेति भव्यं धर्मे स नो जिनः पुरुषवरकमलः ||१७|| विभाविकमला लोक-लोकं नमकमलयोऽरो जीयात् । रापरक मलकवद्यो रेफांतरनंतकमेलघ्नः प्रथमान्तिमकमलहरः साकारानंतकमलभटजेता । निममकलशचिह्ननधरः कमलजजठरो जिनो जीयात् ॥ १९ ॥ तारकमलक्तकोष्ठ के ये साकारकमल धर्मद स्तौमि । लष्टं कमलोच्चपदं तथैव कमलांक सुव्रतजिनेन्द्रम् ||२०|| कमला सुतसमरूप ! नमे ! कुलाकाशकमल सहज निभ । जयकमलसुभगनयन ! साकृतिकमला - मयादिहर ! ॥२१॥ जीयाः सुरनतकमलः कृतकमलः संश्रिते जिनो नेमिः । दुष्कर्मरोग कमलः स्फोटितकमलाक्ष नरक मलः
।। २२।।
कमठे कमलमदहरः कमलयसि निजं कुलं कृतेः पार्श्वः । पापकमलणविमुक्तः केऽभ्रे मुनिहृत्कजे कमलः ॥२३॥ कमलपतिक्रमणांकं कमलभवग्रीवमधिपतिं वीरम् | कमलसमभुज कंठं कमलमदामोदमभिवंदे
॥२४॥
१. हशा ।।
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