Book Title: Stuti Tarangini Part 03
Author(s): Bhadrankarsuri
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

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Page 431
________________ ३८२ स्तुति तरंगिणी सुह गंधरस सुअणसुअ सुलह सयलसुअवरइ पसत्थई, चउगइ गमण भमंति यह इत्तिय दुल्लह देव, सुविहाणं नमि तित्थयर तुह पायहं मह सेव ॥२१॥ तुं जिणेसर तुं जिणेसर तुं महासत्त, तुं जायवकुलातलउ तरुण भावपई मयण जित्तउ, तुं उज्जयन्त गिरिवरसिहरि दिक्खनाणनिव्वाण पत्तउ, उग्गसेन-नरवइ-तणी पइछंडी वरकन्नं, सुविहाणं तुह नेमिजिण सिवसुह मग्ग पवन ॥२२॥ दुरिअ नासई दुरिअ नासई वाहि खय नेइ, उवसग्ग विग्धं हरइ दुनिमित्त दुस्सउण नासइ, इहलोअ परलोअभय दुट्ठकुट्ट गहबल पणासइ, वामादेवी-अंगरुह-जिणवर विग्यविणासकंमठ, महासुरदप्पहर सुविहाणं तुह पास ॥२३॥ चलणि चालिउ चलणि चालिउ मेरुसिहरगग, खिल्लंतइ संगमि गयणमग्गि बढ़ततज्जिय, नियठाणि गयउ सुर मुट्टिघाय जज्जरिय लजउ, एह परकम अतुलबल बालत्तणि तुधीर, सिरि सिद्धत्थराय सुअणुविहाणुं तुह वीर ॥२४॥ जे सु-सावय जे सुसावय साहुवरचित्त सुपवित्त, सुपसन्न मण निसिविरामि थिरविधिर करविनिमण, चउवीसह तित्थंकरह सुप्पभाइ जे थुणई अणुदिण, . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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