Book Title: Stuti Tarangini Part 03
Author(s): Bhadrankarsuri
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

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Page 432
________________ संस्कृत विभाग-२ ते संसारह सायरह उत्तारई अप्पाण, पायह दुक्खह खयकरई संतिमद्द कल्लाणं ॥ २५ ॥ इति चतुर्विंशति- नमस्कारं, भत्तिन्मर - नमिक्सुरिंद-बिंद, वंदिअ पय- पउम --जिणिंद, चंदुज्जल केवलकित्तिधर ॥२६॥ (डहेलानो भंडार - अमदावाद ) श्री - अष्टापद -आदि - बहुतीर्थ-स्तुतिः । ( अष्टापद ) वरकंचण रयणमय, वरकं चणरयणमय, चंग सिंगवासाय ठाविय सुरकिन्नर थुणई सया, विज्झाहरबहुमत्ति भाविअनिअनिअमाणिहि जिणपडिम, ते बंदउं अइ रम्मु अट्ठावय सिहरे, जिम हुइ सफल जम्मु ॥१॥ ( संमेतशिखर) विषय - संभव सुक्खसंभार, छठे विणुपवरतर सिद्धि लच्छि सुविलास वित्ता, तत्र संजमआचर विस वे, खविकम्म जे नाणपत्ता, ते अजिआइ जिणेसर, वीसइ नमिया मत्ति सिरिसंमे अगिरिंमि ठिभा, मविअम्छ दिउ वर मुर्ति Jain Education International ३८३ For Private & Personal Use Only ||२|| www.jainelibrary.org

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