Book Title: Stuti Tarangini Part 03
Author(s): Bhadrankarsuri
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

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Page 433
________________ ફ ( नंदीसर ) नंदीसरवरदीवमज्झमि अंजणगिरि चिह्न दिसिद्दि, वाविमज्झि दद्दिमुहन गिंदा रहकरपव्वयदुनि दुनि, वावि वावि बिहु यासिरुंदा, एसु वीर पायाव बावना सोहड़ तुंग, पद्मवणं चउवीससयं बिंबदं थुगउं सुरंग ॥३॥ ( आबू ) विमलवसही ठिउ जगनाह रिसहेसर पढमजिण गुण निहाणं, तेलुकदंसिअ लूणिगवसही संठविआ, नेमिनाह तिहुअणनमं सिअ पित्तलपडिमा आइ जिणा भत्तिहि थुणउं तिकालं, अब्बूअगिरिवर सिहरि वित्र निम्मलकंति विसालं ॥४॥ स्तुति तरंगिण ( जीराउली ) जस्सनामिहि उग्गरिउवग्ग, Jain Education International उवसग्गा नासर सवे, सिंहनाद जह गय - समूहा, मूल जलोयर कुट्ट - खय-कास- सास- अइमार - पीहा, रोग नाम नासह सयल बहु विलसs कल्लाण, सो जीराउलियासजिणा नितु पालउ अम्हाणं ||५|| ( सीमंधरप्रभु ) देवमाणवचंदनागिद विद्यागइ मुणि निअर जस्सपाय पणमह निरंतर, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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