Book Title: Stuti Tarangini Part 03
Author(s): Bhadrankarsuri
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

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Page 435
________________ ३८६ स्तुति तरंगिणी सत्तरिसय तित्थयरवर तीणं उक्कोसय कालि, भत्रिअ लोअ वंदे विनिअ पावर्षकपक्खालि ॥९॥ (पुंडरीकस्वामि) पढमगणहर रिसहनाहस्स भरहेसर-पढमसुअ, बारसंग जिणि जुत्ति किद्धउ पंचकोडि मुणिवर महिअ, विमलसेलि जे पढम सिद्धउ जससमरणि भविआ लहई, विपुलपुनपब्भार पुंडरीकमहिमानिलउ हउँ जाउं सविचार ॥१० (ज्ञाननी) तहअ-लोअण जिणह सिद्धं बारसंग जिण अच्चिअइ, सुरवरिंदपमुहे हिं रंगिहिं अंतरंग तमपडल हरइ, धरह अत्थ नवनविहिं भंगिहि, नाण भुवण उज्झोयगरा केवलनाण समाण, नाण आराहउ भविअजण जिम पामउ भवठाण ॥११॥ ( 3डेसानी स२-सभा ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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