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स्तुति तरंगिणी सत्तरिसय तित्थयरवर तीणं उक्कोसय कालि, भत्रिअ लोअ वंदे विनिअ पावर्षकपक्खालि ॥९॥
(पुंडरीकस्वामि) पढमगणहर रिसहनाहस्स भरहेसर-पढमसुअ, बारसंग जिणि जुत्ति किद्धउ पंचकोडि मुणिवर महिअ, विमलसेलि जे पढम सिद्धउ जससमरणि भविआ लहई, विपुलपुनपब्भार पुंडरीकमहिमानिलउ हउँ जाउं सविचार ॥१०
(ज्ञाननी) तहअ-लोअण जिणह सिद्धं बारसंग जिण अच्चिअइ, सुरवरिंदपमुहे हिं रंगिहिं अंतरंग तमपडल हरइ, धरह अत्थ नवनविहिं भंगिहि, नाण भुवण उज्झोयगरा केवलनाण समाण, नाण आराहउ भविअजण जिम पामउ भवठाण ॥११॥
( 3डेसानी स२-सभा )
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