Book Title: Stuti Tarangini Part 03
Author(s): Bhadrankarsuri
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan
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संस्कृत विभाग-२
सयण बंधव सयणबंधव भयणि भिव्त्रयणि सुकलत्त, सुअ सज्जणहकणय कोडि परिहरिअ मित्तह, नवि कोइ णय होइ घर मूढजीव परलोह जंतह, परिहरि माया मोह कअडज्झाण,
प्रह उठवि भविण भणउ कुंथुजिणह सुविहाणं ॥ १७॥ नाहि मग्गुं नाहि मग्गुं देवहुं रज्ज, नवि केण देवहतणी गंध रस फास मग्गुं, परिचत्त - बंधवसयण हक्क चित्ति तुं वयणि लगाउ, इत्तिअ मग्गुं सुरमहिअ अरतित्थयर सुसार, सुविधाणं तुह तिम करिहि जिम न पहुं संसारि ॥ १८ ॥ नाणदंसण नाणदंसण चरणपायार, कविसीसय सीलगुणिधमनयर तत्र घरय छज्जह, संता सुखाइ सहिअमो हसितु तई देव भज्जह, जस आरक्खिअ देवहुंअर क्खेवा असमत्थ, मल्लिनाह सुविहाणं तुद्द तुं रक्खणह समत्थ ||१९|| पवयण चालिअ धयवडाडोअ - समजुव्वणजिअ जगह अथिरसयल धणधन संचय. संजोकर वयदिणह पुणवि होइ लोअह अणिव्वउ, पिकखवि चंचल मनुअ भव ना लसीउ घरवास, सुणिसुब्वय सुविधाणं मह च्छिदेह भवपास ||२०|| सुलहकंकण सुलहकंकण रयणमयहार, वर जुव्वर मंदिरिहं सुलह सयण सुपसत्थवत्थद्द,
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