Book Title: Stuti Tarangini Part 03
Author(s): Bhadrankarsuri
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan
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ज्झावज्जुव्वणज्झावज्जुव्वण ज्झाइनहुपारि, जरा जीवन वियरह ज्झाव वाहि न तविण विणासह, वसि जाव परिअणसयल ज्झाव रुवलायन नासर, जाव न इंदिअबलहंतो लेविण अप्पाण,
ता जंपह जिणवरभवणि विमल जिणह सुविहाणं ॥ १३॥
अरिहसासण अरिहसासण अरुह अरिहंत, सिव संकर सुगइ घर परमजोइ जोईसमु णिवर, अपुणरावि परम-पय-- पत्त - चत्त- दुह - हेउहभर, अखयनिरंजण सुहसहिय पयडिअ रूव - मणंत, सुविधाणं तुह परमगुरु दुज्झय - कम्म- कयंत ॥ १४ ॥
स्तुति तरंगिणी
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धम्म संचउ धम्म संचउ धम्म अन्वेद, मन धमि संसउ धरुधम्महोइ परलोगबंधव, जिणधंमह बाहिरुअवर सव्व इहलोअधंघउ, इअ जाणेविणं भत्तिअजण मा वंचह अप्पाण जाइ, विजिण मंदिरिभणउ धम्मजिणह सुविधाण ||१५||
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जेण छंडिय जेण छंडिय रायवररिद्धि, छखंड वसुमइरयण नवनिहाण हयगयसुसुंदर, तियजोइहपुर पट्टण गामनगर बहुदेस मंडल, विक्खवि चंचल मणुअभवगहिउ संजमभार, संतिनाह सुविहाण तुह पुहुविहं लोअहसार ॥ १६ ॥
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