Book Title: Stuti Tarangini Part 03
Author(s): Bhadrankarsuri
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

View full book text
Previous | Next

Page 429
________________ -३८० ज्झावज्जुव्वणज्झावज्जुव्वण ज्झाइनहुपारि, जरा जीवन वियरह ज्झाव वाहि न तविण विणासह, वसि जाव परिअणसयल ज्झाव रुवलायन नासर, जाव न इंदिअबलहंतो लेविण अप्पाण, ता जंपह जिणवरभवणि विमल जिणह सुविहाणं ॥ १३॥ अरिहसासण अरिहसासण अरुह अरिहंत, सिव संकर सुगइ घर परमजोइ जोईसमु णिवर, अपुणरावि परम-पय-- पत्त - चत्त- दुह - हेउहभर, अखयनिरंजण सुहसहिय पयडिअ रूव - मणंत, सुविधाणं तुह परमगुरु दुज्झय - कम्म- कयंत ॥ १४ ॥ स्तुति तरंगिणी - धम्म संचउ धम्म संचउ धम्म अन्वेद, मन धमि संसउ धरुधम्महोइ परलोगबंधव, जिणधंमह बाहिरुअवर सव्व इहलोअधंघउ, इअ जाणेविणं भत्तिअजण मा वंचह अप्पाण जाइ, विजिण मंदिरिभणउ धम्मजिणह सुविधाण ||१५|| Jain Education International जेण छंडिय जेण छंडिय रायवररिद्धि, छखंड वसुमइरयण नवनिहाण हयगयसुसुंदर, तियजोइहपुर पट्टण गामनगर बहुदेस मंडल, विक्खवि चंचल मणुअभवगहिउ संजमभार, संतिनाह सुविहाण तुह पुहुविहं लोअहसार ॥ १६ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446