Book Title: Stuti Tarangini Part 03
Author(s): Bhadrankarsuri
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

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Page 404
________________ संस्कृत विभाग-२ विमोगकृत्याद ! सुपार्श्व ! हेम-, विमोगरिष्टातिशयैर्वरिष्ठ ! ॥७॥ वलक्षकान्ते ! महसेन-धनोऽ-, वलक्षणो दारतगं प्लवन्तम् । वलक्षचन्द्रांक ! भवाम्बुराशा,वलक्ष चन्द्रप्रभ ! मामरीणाम् ॥८॥ रामात्मजापारभवन्त-महत्-, श्रीणामकूपार ! भजन्ति के के । संध्वस्तपापा रमसेन पुष्प-, दन्तप्रभोऽपारभवाब्धिपोतम् ।।९॥ श्रीशीतलं के न भजन्त ईशं, नन्दात्मजं केन भनाथ-कीर्तिम् दुःकर्मपकेन भमुत्प्रभावाः, श्रीवत्सांकेन भवेऽत्र लक्षम् ... ॥१०॥ श्रेयांसिसागंगमविष्णुसूनो, विधेहि मे रागमहाहिताक्ष ! । श्रेयांसमारागमनीय खडूगिध्वजान्तरा-रागमहाबलान् ॥११॥ (रथोद्धता) वासुपूज्य ! जयया त्वमम्बया कासरध्वज ! यया शेक्षितः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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