Book Title: Stuti Tarangini Part 03
Author(s): Bhadrankarsuri
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan
View full book text
________________
*
अमिय-माण - सुमाण - रमाधरो, सुगुरु-हीर विजय - सूरीसरो
सबल मोहमहाभय - गंजणो, पउम - तुल्ल - सुरत- तणू जिणो, स पउमप्यहनाह भवंतगो, विजय सेणगणा हिवतायगो
जय सुवास सुवास जिणेसरो, भवियपं कयबोहदिणेसरो । विमलनाणपयासत मोहरो, सुगुरुहीर विजयसूरी सरो
विमल - चंद- समुज्जल-संवरो, दिसउ मद्दभरं करुणायरो | पवरचंदपहो जिणनायगो, विजय सेणगणा हिवतायगो ससुविही सुविही जिणपुंगवो, पणय - सव्त्र - सुरे सणराहिवो । पवरखंतिविमुत्ति - गुणायरो, सुगुरु-हीर विजय - सूरीसरो विमलवाणि - विरंजिय - सत्थुणो, धवलपुन्न - संसंकस माणणो ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
स्तुति तरंगिणी
॥५॥
॥-६॥
11911
41611
५९॥
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446