Book Title: Stuti Tarangini Part 03
Author(s): Bhadrankarsuri
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

View full book text
Previous | Next

Page 384
________________ ३३५ ॥१२॥ ॥१३॥ संस्कृत विभाग-२ जय ! जयांगजने स्वमनंगजित् , कमलगाऽमलगात्रपवित्रवार सुकृतिनेतरनेतरलंभकं, विनयतेऽनमते ऽनमते नमः । विमलतीर्थकृता विमलीकृतं, जगददोऽगददो-दितयेऽनिशम् उपनमंति नरामरपालका:, विमलजातिमुपात्तचरित्रतः । वस्यशोरयशोभवगामिनं, चितमनंतमनंतजिनं स्तुवे अवतु धर्मजिनेन्द्र उपद्रवात् , जितसमुद्रसमुद्रगभीरतः । घरमदी-दिशदाशुभवाशुयो, वृषमदोरमदोरनलीकवाक हृदयपविभाकृत ईतयो, जिन ! नतेस्त्वदगुमंगलांछन । सुरकृतांबुज-पादनिधायक! . कुरु समेरुशमेवशमीश माम् किमतिरेकमतिश्रियमाश्रिताः!, ननु वचस्तव च श्रुतिमाविशत् । ॥१४॥ ॥१५॥ ॥१६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446