Book Title: Stotratmaka tatha Updeshatmaka Chotris Laghu Krutiono Samucchaya
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ अनुसन्धान ४४ नाम जोवा मळे छे. कर्ता स्वयं तेने 'संवेगामृतभावना' तरीके ओळखावे छे. आनो प्रारम्भ ज केवो वेधक छे ! कर्ता कहे छे के "प्राकृतनो वा संस्कृतनो - कोई पण पाठ काम आवे तेम नथी. जे थकी संवेग अने वैराग्य प्रगटे, ते ज साचो रहस्य-पाठ गणाय." लागे छे के कर्ता वैराग्यभावनी तीव्र संवेदनाथी छलकाता हशे. १५मा पद्यमां श्रीजिनेश्वरसूरिनुं तथा तेमना रचेला ग्रन्थ 'आत्मानुशासन'नुं स्मरण करी तेनुं अवगाहन करवानी शीख आपे छे. ते रचनामां वैराग्यनो हृदयस्पर्शी बोध हशे, अने कर्ताना चित्त पर तेनी गाढ असर पडेली हशे, तेम मानी शकाय. १७मा पद्यमां 'कोट्या गृह्णन्ति काकिनीम्' पद छे, तेमां 'कोटी'शब्द आपणे जेने 'कोडी' (रमवानी कोडी) कहीए ते अर्थमा प्रयोजायो छे, त्रीजी रचनामां श्रीऋषभदेव भगवान प्रत्ये कर्ताए अत्यन्त दीनभावे, पोतानी करुणाजनक स्थिति, हृदयद्रावक वर्णन करवापूर्वक पोताने संसारथी उगारवा माटेनी करेली विज्ञप्ति छे. ३० प्राकृत पद्योमा छवायेली विज्ञप्तिका खरेखर हृदयने भावाई बनावी मूके तेवी छे. चोथी रचना छे 'अप्पाणुसासणं' - आत्मानुशासन. पोताना आत्माने एक भवभीरु अने आत्मार्थी आचार्य केवी रीते शिक्षा आपे छे, तेनो ख्याल, आ,अपेक्षाकृत दीर्घ रचनानी, केटलीक गाथाओनो अभ्यास करतां आवी शके प्रारम्भे ज बीजी गाथामां सरस्वती देवीनी स्तुति कर्ताए अलग ज अंदाजमां करी छे : "गीत, अमृत अने इष्ट (वहाली व्यक्ति), आमांनी एक पण वस्तु एवी मीठी नथी लागती, जेटली कोई उत्तम पुरुषना मुखमांधी प्रगटती भारती देवी (वाणी) मीठी लागे छे !" एक ज वाक्यमां वाणीनी अने सज्जननी केवी मधुर स्तुति ! वैराग्यनी अने आत्मानी वातो निरन्तर कर्या करनारा जनोने कर्ताए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 66