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अजितशान्ति स्तवनम् ॥ (तं ) अजितनाथ स्वामीको (न ) नहीं ( पावइ ) प्राप्त होसकता ( धरणिधर ) पर्वतोंका (वई ) पति सुमेरुपर्वत ( सारगुणेहिं ) स्थैर्यादि गुणोंसे (तं ) अजितनाथ स्वामीको ( न ) नहीं ( पावइ ) प्राप्त होसकता।
(भावार्थ) उदय होनेवाला शरदऋतुका चांद अपने आल्हादकस्वादि गुणोंसें अजितनाथ स्वामीकी बराबरी नहीं कर सकता, नया शरतत्कालिक सूर्य अपने प्रचण्ड तापादि गुणोंसे अजितनाथ स्वामी की बराबरी नहीं करसकता, देवोंका पति इन्द्र भी अपने सौंदर्यादि गुणोंसे अजितनाथ स्वामी की बराबरी नहीं करसकता. तथा पर्वतोंका स्वामी मेरुपर्वत भी अपने निश्चलतादि गुणोंसे अजित नाथ स्वामी की बराबरी नहीं करसकता।
(ललितकंछंदः)
(ललिअयं) तित्थवरपवत्तयं तमरयरहियं धीरजणथुचि चुअकलिकलुसं । संतिसुहपवत्तयं तिगरणपयओ संति महं महामुणिं सरणमुवणमे ॥१८॥