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अजितशान्ति स्तवनम् ॥
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षट्जस्वर से गीतके साथ पावोंकी किंकिणियोंके शब्दसे मिलेहुए कंकण नूपुर आदि आभूषणों के मधुर शब्दसे मिश्रित हावभावकटाक्षादिपूर्वक अंगविक्षेपोंसे युक्त नृत्यकर देवनर्तकिओंने अत्यन्त पराक्रमशाली जिन भगवान के चरणकमलों को नमस्कार किया वे प्रसिद्ध तीनों लोकमें जीवोंके विघ्नोंको नाशकरनेवाले पाप दोषसे रहित ऐसे श्रेष्ट जिनभगवान शान्तिनाथ स्वामीको मैं भी नमस्कार करता हूं ।
( ललितकंछंदः ) ललिअयम् ॥ त्रिभिर्विशेषकम् ॥ छत्रचामरपड़ागजूवजवमंडिआ ज्झयवरमगर तुरय सिखिच्छसुलंछणा । दीवसमुद्दमंदरदिसागयसोहिया सत्थिअवसहसी ह
सिखिच्छसु
लंछणा ॥ ३२ ॥
( छाया )
छत्रचामरपताकायूषयवमण्डिताः
ध्वजवरमकरतुरग
श्रीवत्स सुलाञ्छनाः द्वीपसमुद्रमन्दर — दिग्गजशोभिताः
स्वस्तिकवृषभ सिंह श्रीवृक्षसुलाञ्छनाः ।