Book Title: Stotradi Sangraha
Author(s): Kantimuni, Shreedhar Shastri
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 184
________________ २२ गुरुपारतव्यस्तोत्रम् ॥ ( उढमुहो ) व्याख्यानके प्रस्तावमें ऊर्ध्वमुख (सहइ) शोभायमान है ( जस्स ) जिनका ( करो ) हात ऐसे ( दसिय ) दिखाया है ( निम्मल ) पापरहित (निच्चल) भली भांति व्रतके पालन में तत्पर ऐसा ( दन्तगगो) मुनिसमूह जिनने, अगणिय नहीं गिना है ( सावउछ ) श्रावकोंका (भउ ) अपेक्षा लक्षण भय जिनने अथवा सुसाधुओंसे परिवृत होनेसे (अगणिय) नहीं गिना है ( सावउछ ) मिथ्यात्वी श्रावकोंका ( भउ ) भय जिनने, ( गुरु ) श्रेष्ट (गिरि ) वाणीमें ( गुरुउ ) उत्कृष्ट, (सरहु ) अष्टापदके (व्व ) समान (सरि ) सरि ( जिणवल्लहो ) जिनवल्लभ ( होछा ) हुए अथवा थे ॥ १७-१८ ॥ - (शरभपक्षे ) पदार्थ ( उवरि ठिय) ऊर्ध्व देशमें स्थित हैं ( सत् ) विद्यमान (चरणो) पांव जिसके, (चउरणुउग) चार पांवके सम्बन्धसे (प्पहाण ) प्रधान हैं ( संचरणो ) संचार जिसका, ( असम ) असाधारण बलवाले ( मयराय ) सिंहका ( महणों ) नाश करने वाला, ( उट्ठमुहो) लीलावशसे ऊंचा किया हुआ

Loading...

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214