Book Title: Stotradi Sangraha
Author(s): Kantimuni, Shreedhar Shastri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 207
________________ ॥ श्रीवीतरागायनमः॥ अथ श्रीभद्रबाहुकृतउवसग्गहर स्तवनं प्रारभ्यते. ॥ गाथा ॥ उवसग्गहरंपासं पासर्वदामि कम्मघणमुकं । विसहरविसनिन्नासं मंगलकल्लाणआवासं ॥१॥ (छाया) . उपसर्गहरंपार्श्व (प्राशं ) कर्मघनमुक्तं विषधरविषनिाशं मंगलकल्याणावासं एतादृशं पार्श्व वन्दामि ॥१॥ __(पदार्थ) ( उवसग्ग ) दुःखसंकटादिक उपसर्गका अथवा ( उवसग्ग ) रागद्वेषमोहकृत जन्मजरामरणरूप उपसर्ग का ( हरं ) नाशकरनेवाले ( पास ) पार्श्वनामक यक्ष है सेवक जिनका ऐसे अथवा ( पास ) ( प्राशं प्रगता

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