Book Title: Stotradi Sangraha
Author(s): Kantimuni, Shreedhar Shastri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 199
________________ सिग्धमबहर स्तोत्र ॥ गोत्र संतान ( देस ) देश इनसंबंधी ( देव ) देवता और ( अहिदेव ) अधिष्ठात्री देशा (ता ) ये सब ( निव्वुइपुर ) मोक्षरूप नगरके ( पहियाणं.) पथिक ( भन्वाण ) भव्यजीवोंको ( सुक्खाणि ) कष्टनिवारणरूपसुख ( कुणन्तु ) करो ॥ ८॥ . (भावार्थ ) क्षेत्रदेवता गृहदेवता गोत्र संतानदेवता देशदेवता और इन्होंकी अधिष्ठात्री देवता ये सब मोक्षरूपनगरको जानेवाले पथिकजनोंको कष्टनिवारणरूपसुख करो ॥८॥ ॥ गाथा ॥ चकेसरिचक्कधरा विहिपहरिउछिन्नकंधराघणियं । सिवसरणिलग्गसंघस्स सव्वहाहरउविग्याणि ॥९॥ (छाया) विधिपथरिपूणां अत्यर्थंछिन्नकंधरा चक्रधरा चक्रेश्वरी शिवसरणिलंग्नसंघस्य विघ्नानि सर्वथा हरतु ॥ ९ ॥ (पदार्थ) (विहिपह ) जैनक्रियाके मार्गके ( रिउ ) शत्रुओंकी ( घणियं ) अत्यर्थ (छिन्न ) काटी है ( कंधरा ) गर्दन जिसने ( चक्कधरा ) चक्रको धारणकरनेवाली

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