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उल्लासिक स्तोत्रम् ॥ __ . २० करनेवाले पुरुषोंकेभी ( अखिलं ) सम्पूर्ण ( दुरिअं) पापको [ हरसु ] हरणकरो और ( मंगल ) कल्याण ( कुरु ) करो.
(भावार्थ ) विजया नाम्नी माता और जितशत्रु नामक पिताके पुत्र ऐसे हे अजित जिन भगवन् और अचिरानाम्नी माता तथा विश्वसेन नामक पिता के पुत्र पांचवें चक्रवर्ती सोलहवें तीर्थकर सत्पुरुषोंके प्यारे ऐसे हे शान्तिनाथ जिन भगवन् आप मेरे और इस स्तवनको पठन करनेवाले भव्यजीवोंके पूर्वोक्तप्रकार संपूर्ण पार्पोको हरण करो और मंगल करो
इति श्रीजिनवल्लभसूरिविरचितमुल्लासिक्कस्तोत्रमिन्दुरजैनश्वेताम्बरपाठशाल मुख्याध्यापकचोबेकुलोद्भवश्रीगोपीनाथसूनुपाण्डतश्रविष्णशर्मकृतसुबोधिनी
घ्याख्योपेतं समाप्तम् ।