Book Title: Stotradi Sangraha
Author(s): Kantimuni, Shreedhar Shastri
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 172
________________ गुरुपारतंत्र्य स्तोत्रम् ॥ (छाया) . प्रकटीकृतसूरिमंत्रमाहात्म्यः प्रतिहतकषायप्रसरः शरच्छशांक इव सुखजनकः श्रीवर्धमानसूरिः नंदतात् ॥८॥ (पदार्थ) ( पयडीकय ) प्रकट कियाहै ( सूरिमंत ) सूरिमंत्रका ( माहप्पो) प्रभाव जिनने (पडिहय ) नष्ट किया . है (कसाय ) कामक्रोधादिकषायोंका ( पसरो ) प्रसार जिनने ( सरय ) शरत्कालिक ( ससंकुव्व ) चन्द्रसमान ( सुहजणउ ) सुख उत्पन्न करनेवाले ऐसे ( सिविद्धमाणसूरि ) श्रीवईमानसूरि उत्कर्षशाली होओ॥८॥ (भावार्थ) प्रकट किया है सूरिमंत्रका प्रभाव जिनने नष्ट कियाहै कामक्रोधादिकषायोंका प्रसार जिनने शरत्कालिक चन्द्रसमान सुख उत्पन्न करनेवाले ऐसे श्रीवईमानसरि उत्कर्षशाली होओ ॥ ८ ॥ अथ वसतिमार्गप्रकाशकश्रीजिनेश्वरसूरिस्तुति गाथात्रयेणाह सुहसीलचोरचप्परण पचलोनिचलोजिणमयंभि । जुगपवरसुद्धसिद्धंत जाणउ पणयसुगुणजणो ॥९॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214