Book Title: Stotradi Sangraha
Author(s): Kantimuni, Shreedhar Shastri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 179
________________ गुरुपारतभ्यस्तोत्रम् ॥ जिनने, उन्मूलित किया है प्रद्वेष जिनने, संसारसे डरे हए भविक जनोंके मनको किया है संतोष जिनने, गए हैं समस्त दोष जिनके, युगमें प्रकृष्ट शास्त्रको धारण करनेवाले, ऐसे कालिक सूरियोंके सिद्धान्तको अनुसरण करनेवाली चौथी पर्युषणादिकोंके आचरणसे मनोझ, मुनियोंमें अत्यन्त श्रेष्ट, उत्कृष्ट शान्तिको धारण करनेवाले, ऐसे श्रीअभयदेवसूरि विजयशाली होओ ॥ १३-१४ ॥ अथ स्वगुरोः श्रीजिनवल्लभसूरेः स्तुलै सिंहप्रकृतित्वं गाथाद्वयेनाह. (गाथा ) कयसाल्यसत्तासो हरिव्वसारंगभग्गसंदेहो । गयसमय दप्पदलणो आसाइयपवरकव्वरसो।१५। भीमभवकाणणमि दंसियगुरुवयणरयणसंदोहो । नासेससतगुरुउंसूरीजिणवल्लहोजयइ ॥ १६ ॥ छाया (प्रभुपक्षे) कृतश्रावकसत्याशः सारांगभग्नसंदेहः गतसमयदर्पदलनः आस्वादितप्रवरकाव्यरसः दर्शितगुरुवचनरचनसंदोहः निःशेषसत्वगुरुकः एतादृशः सरिजिनवल्लभः भीमभवकानने हरिव जयति

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